Thursday, August 11, 2011

स्त्री.....गीता पंडित... अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो..

 
 
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो...
असीम पीड़ा का विषय है जब कोई स्त्री
ऐसा सोचने पर मजबूर हो जाती है
नकारती है अपने अस्तित्व को,
अपने होने को ...
 
ओह !!!!!!!
 
आज इसी पीड़ा को समर्पित है
मेरी कुछ पंक्तियाँ...
 
 
...
......
 
 
स्त्री____
 
पूर्ण समर्पण के धागों में बंध - कर कब ना वो हर्षाई,
नयन मूंदकर साथ तुम्हारे हरपथ पर वो चलकर आई,
जितना ओढ़ा उसने तुमको,  उतना वस्त्र - हीन हो आई , 
द्वार  झरोखे सभी बंद हैं श्वास से अब हो गयी जुदाई,
कितने और मुखौटे उसके जीवन की हो गयी लघुताई,
श्याम तुम्हारी प्रीत बखाने राधा क्यूँ ना नाम कहाई ||
 
 
...गीता पंडित  

11 comments:

Devender Pal Singh said...

very touching views ,but very true .thanks for sharing ,all the best

Unknown said...

behtreen panktiyaan....
kanaha par meine bhi kuch likin hain
prars.blogspot.com

Jennifer said...

It's great stuff. I enjoyed to read this blog. Each and every day your blog having some wonderful topic.

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Udan Tashtari said...

गहन अभिव्यक्ति!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति है!
रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!

Amrita Tanmay said...

ह्रदय को झंकृत करती रचना .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत संवेदनशील ..अच्छी प्रस्तुति

Nidhi said...

दिल को छू गयी ...आपकी यह रचना

गीता पंडित said...

आभार वंदना जी ...
शुभकामनाएं रक्षाबंधन के पर्व के लियें..


सस्नेह
गीता पंडित

गीता पंडित said...

आप सभी मित्रों की
हृदय से आभारी हूँ...


शुभ कामनायें
सस्नेह
गीता

Gunjan said...

ohh kya baat hai..... bahaut hi badhiya.... shyam tumhari preet bakhane radha kyun na naam kahai