Saturday, September 14, 2019

हिन्दी दिवस पर एक मुक्तक .....गीता पंडित

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सच को सच ही कहना होगा

आग लगे तो दहना होगा

डरकर जीना भी क्या जीना

झूठ कहो क्यूँ सहना होगा।

#गीतापंडित
#१४सितम्बर१९ 

एक मुक्तक ...हिन्दी दिवस पर....गीता पंडित

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सच को सच ही कहना होगा

आग लगे तो दहना होगा

डरकर जीना भी क्या जीना

झूठ कहो क्यूँ सहना होगा।

#गीतापंडित
#१४सितम्बर१९

Thursday, July 18, 2019

जब दिलों में जगह ... ग़ज़ल ..मदन शलभ

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जब दिलों में जगह  नहीं होती 
दोस्ती की वजह   नहीं होती                  
                
कमी होगी ज़रूर हम में ही  
दुश्मनी बे- वजह नहीं होती                     
                 
पूजते हम न अगर पत्थर को                   
ज़िंदगी यूँ ज़िबह  नहीं होती                     

प्यार तो नाम है इबादत का                     
कभी इसमें  जिरह नहीं होती                     

ऐसी भी बदनसीब रातें हैं                       
जिनकी कोई सुबह नहीं होती                    

कह सकोगे शलभ ग़ज़ल कैसे
जब गज़ल की तरह नहीं होती ||




मदन शलभ  

19 जुलाई 2019

(ग़ज़ल संग्रह में प्रकाशित)


प्रेषिका 
गीता पंडित 
सम्पादक शलभ प्रकाशन 





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Thursday, July 4, 2019

प्रवीण पंडित की एक ग़ज़ल


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चलूँ कुछ रोशनी बुनकर , नई राहें बिछा लूँ तो
बहुत मायूस लब हैं , गीत वोही, गुनगुनालूँ तो |

मेरे कुछ ख़्वाब शायद मोड़ तक पहुँचे नहीं होंगे
उस रूठे यार को आवाज़ दे ,फिर से बुला लूँ तो |

न जाने बात निकली ,लोग क्या मानी लगा लेंगे
उसका नाम फिर ओठों पे आने से दबा लूँ तो |

कहीं पर धूप, बारिश या कभी तूफान भी आए
अपना हौसला, एक बार फिर से आज़मा लूँ तो |

सुनहरे कुछ सवेरे , साँझ गंदुम, स्याह सी रातें
सभी ये रंग दिल के केनवस पर ही लगा लूँ तो |

बहुत अरसा हुआ ख़ामोशियों में तैरते, घिरते
बुरा गर न लगे तो ,आज फिर से मुस्करा लूँ तो |


-प्रवीण पंडित की खूबसूरत गज़ल 
'गर्भनाल पत्रिका - जुलाई 2012 से .... आप भी पढ़िए 

सम्पादक 
गीता पंडित 

Saturday, May 4, 2019

एक नवगीत -लोकतंत्र दुख पाता है - गीता पंडित



लोकतंत्र दुख पाता है -

फिर संसद ने टेर लगाई
समय खड़ा मुसकाता है

लगा सभा हर मंच दहाड़ा
सेहरा बाँधे हँसे चुनाव
झूठ पहनकर चोगा व्हाइट
सच बेचारा रहा फँसाव

बग़लें झाँके वोट यहाँ अब
लोकतंत्र दुख पाता है
  
हर चौराहा इशतहार बन
रोक रहा जन मन के पाँव
कुर्सी दल बल बनकर देखो
लगा रही है शकुनी दॉव

सुबहा खड़ी अपलक निहारे
दिनकर रोता आता है।
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गीता पंडित
5 मई 2019