अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो...
असीम पीड़ा का विषय है जब कोई स्त्री
ऐसा सोचने पर मजबूर हो जाती है
नकारती है अपने अस्तित्व को,
अपने होने को ...
ओह !!!!!!!
आज इसी पीड़ा को समर्पित है
मेरी कुछ पंक्तियाँ...
...
......
स्त्री____
पूर्ण समर्पण के धागों में बंध - कर कब ना वो हर्षाई,
नयन मूंदकर साथ तुम्हारे हरपथ पर वो चलकर आई,
जितना ओढ़ा उसने तुमको, उतना वस्त्र - हीन हो आई ,
द्वार झरोखे सभी बंद हैं श्वास से अब हो गयी जुदाई,
कितने और मुखौटे उसके जीवन की हो गयी लघुताई,
श्याम तुम्हारी प्रीत बखाने राधा क्यूँ ना नाम कहाई ||
...गीता पंडित
11 comments:
very touching views ,but very true .thanks for sharing ,all the best
behtreen panktiyaan....
kanaha par meine bhi kuch likin hain
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गहन अभिव्यक्ति!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति है!
रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
ह्रदय को झंकृत करती रचना .
बहुत संवेदनशील ..अच्छी प्रस्तुति
दिल को छू गयी ...आपकी यह रचना
आभार वंदना जी ...
शुभकामनाएं रक्षाबंधन के पर्व के लियें..
सस्नेह
गीता पंडित
आप सभी मित्रों की
हृदय से आभारी हूँ...
शुभ कामनायें
सस्नेह
गीता
ohh kya baat hai..... bahaut hi badhiya.... shyam tumhari preet bakhane radha kyun na naam kahai
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