"रचनाकार, पहले इंसान होता है! महिला और पुरुष बाद में होता है!
शब्दकोष पर सबका हक है! हमे किसी स्त्री के भेद के चलते ना ही
महिला रचनाकार को कम आंकने का अधिकार है और ना ही पुरुष
रचनाकार को! यदि प्रतिभा है, चाहें उस प्रतिभाशाली की देह का रूप
महिला हो या पुरुष, हमे उसकी रचना का सम्मान करना चाहिए!
मैंने अपनी ये रचना सिर्फ और सिर्फ इसी सन्देश को देने के लिए
लिखी है!
शब्दों को नमन, भावों को नमन,
शब्दों को नमन, भावों को नमन,
प्रेरणा को नमन, प्रतिभा को नमन!- चेतन रामकिशन "देव"
...
.....
१)
रचनाकार
( शब्दों की आत्मा)...
लेखन हो या कविता रचना, या हो मीठा गान!
ये तो शब्दों का संगम है, भेद रहित व्याखान!
रचनाकार की देह महिला, या हो पुरुष का रूप,
शब्दों में ताक़त होगी जब, तभी बने पहचान!
ये तो शब्दों का संगम है, भेद रहित व्याखान!
रचनाकार की देह महिला, या हो पुरुष का रूप,
शब्दों में ताक़त होगी जब, तभी बने पहचान!
पुरुष- महिला बाद में हैं वो, पहले रचनाकार!
इनके हस्त ने शब्दों से ही, रचा अमिट संसार!
इनके हस्त ने शब्दों से ही, रचा अमिट संसार!
भेद दूर कर, मन से करिए,रचना का सम्मान!
शब्दों में ताक़त होगी जब, तभी बने पहचान.........
शब्दों में ताक़त होगी जब, तभी बने पहचान.........
पुरुषो ने भी लिखा है यदि, यहाँ अमिट बलिदान!
महिला ने भी इस भूमि में, थामे तीर कमान!
शब्दकोष तो सबका होता, हम क्यूँ रखें भेद,
पुरुष महिला से पहले हैं, हम सब एक इंसान!
महिला ने भी इस भूमि में, थामे तीर कमान!
शब्दकोष तो सबका होता, हम क्यूँ रखें भेद,
पुरुष महिला से पहले हैं, हम सब एक इंसान!
पुरुष यदि शब्दों को देता, भाव का जीवन दान!
तो महिला रचनाधर्मी भी, प्रेषित करती प्राण!
तो महिला रचनाधर्मी भी, प्रेषित करती प्राण!
भेद दूर कर मन से करिए, भावों का उत्थान!
शब्दों में ताक़त जब होगी, तभी बने पहचान !
शब्दों में ताक़त जब होगी, तभी बने पहचान !
पुरुष का चिंतन भी ना कम, ना नारी कमजोर!
इन दोनों के शब्द से बंधती, सदा प्रीत की डोर!
अपने इन छोटे शब्दों से "देव" यही समझाता,
रचनाओं को साथ करो तुम, मन को करो विभोर!
इन दोनों के शब्द से बंधती, सदा प्रीत की डोर!
अपने इन छोटे शब्दों से "देव" यही समझाता,
रचनाओं को साथ करो तुम, मन को करो विभोर!
कलमकार शब्दों में देता, दृढ, अमिट प्रभाव!
उसके मन में दोष ना होता, ना होता दुर्भाव!
जहाँ बेटी विदा होती, वहां ऐसा ही होता है!
खड़ा कुछ दूर कोने में, उसी का भाई रोता है!
उसके मन में दोष ना होता, ना होता दुर्भाव!
भेद दूर कर मन से करिए, रचना का गुणगान!
शब्दों में ताक़त जब होगी, तभी बने पहचान!"......
शब्दों में ताक़त जब होगी, तभी बने पहचान!"......
२)
नारी ( अपराधी तो नहीं) ♥♥♥♥♥"
एक नारी का अर्पण देखो!
उसका जरा समर्पण देखो!
हर लम्हा वो त्याग ही करती,
उसका जीवन दर्शन देखो!
उसका जरा समर्पण देखो!
हर लम्हा वो त्याग ही करती,
उसका जीवन दर्शन देखो!
लेकिन फिर भी उसी नार को, श्राप मगर समझा जाता है!
वो हंसके जो देखे सबको, पाप मगर समझा जाता है!
वो हंसके जो देखे सबको, पाप मगर समझा जाता है!
दुनिया में नारी मुक्ति की, बात मुझे बेमानी लगती!
उसके जीवन की बगिया में, अब तो बस वीरानी लगती!
उसके जीवन की बगिया में, अब तो बस वीरानी लगती!
ऐसा ही माहौल रहा तो, नारी कब आज़ाद रहेगी!
वो रोएगी सिसक सिसक के, वो तो बस बर्बाद रहेगी!
वो रोएगी सिसक सिसक के, वो तो बस बर्बाद रहेगी!
उसके मन का मंथन देखो!
प्रेम भरा वो उपवन देखो!
उसकी इन दोनों आँखों में,
हम सबका अभिनन्दन देखो!
प्रेम भरा वो उपवन देखो!
उसकी इन दोनों आँखों में,
हम सबका अभिनन्दन देखो!
लेकिन फिर भी उसी नार को, श्राप मगर समझा जाता है!
खुशियों की इस जननी को, संताप मगर समझा जाता है!
खुशियों की इस जननी को, संताप मगर समझा जाता है!
दुनिया में नारी मुक्ति की, बात मुझे बेमानी लगती!
जिसके पन्ने सिमट रहें हों, ऐसी मुझे कहानी लगती!
जिसके पन्ने सिमट रहें हों, ऐसी मुझे कहानी लगती!
ऐसा ही माहौल रहा तो, वो कैसे फ़रियाद कहेगी!
वो रोएगी सिसक सिसक के, वो तो बस बर्बाद रहेगी!
वो रोएगी सिसक सिसक के, वो तो बस बर्बाद रहेगी!
उसका मनवा पावन देखो!
हर्ष भरा वो आगम देखो!
हमको ठेस जरा लगने पर,
उसके भीगे नैनन देखो!
हर्ष भरा वो आगम देखो!
हमको ठेस जरा लगने पर,
उसके भीगे नैनन देखो!
लेकिन फिर भी उसी नार को, श्राप मगर समझा जाता है!
उस मस्तक के गौरव को, पदचाप मगर समझा जाता है!
उस मस्तक के गौरव को, पदचाप मगर समझा जाता है!
दुनिया में नारी मुक्ति की, बात मुझे बेमानी लगती!
"देव" ने बदली सूरत है बस, नियत वही पुरानी लगती!
"देव" ने बदली सूरत है बस, नियत वही पुरानी लगती!
ऐसा ही माहौल रहा तो, वो कैसे अवसाद सहेगी!
वो रोएगी सिसक सिसक के, वो तो बस बर्बाद रहेगी!”
वो रोएगी सिसक सिसक के, वो तो बस बर्बाद रहेगी!”
......
3)
बेटी कि विदाई ♥♥♥♥♥
पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई!
विदा जब हो रही बेटी, तो ख़ामोशी पसर आई!
विदा जब हो रही बेटी, तो ख़ामोशी पसर आई!
समूचे द्रश्य नयनों के पटल पे, आ गए झट से,
कभी जिद करती थी बेटी, कभी रोई थी, मुस्काई!
कभी जिद करती थी बेटी, कभी रोई थी, मुस्काई!
जहाँ बेटी विदा होती, वहां ऐसा ही होता है!
खड़ा कुछ दूर कोने में, उसी का भाई रोता है!
कलाई देखता अपनी, जहाँ राखी थी बंधवाई!
पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई.....
पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई.....
विदाई के समय बेटी का भी, ये हाल होता है!
जो पल थे साथ में काटे, उन्ही का ख्याल होता है!
माँ उसके सर पे रखकर हाथ ये समझाती है उसको,
हर एक बेटी का दूजा घर, वही ससुराल होता है!
जो पल थे साथ में काटे, उन्ही का ख्याल होता है!
माँ उसके सर पे रखकर हाथ ये समझाती है उसको,
हर एक बेटी का दूजा घर, वही ससुराल होता है!
जहाँ बेटी विदा होती, विरह का काल होता है!
धरा भी घूमना रोके ,ये नभ भी लाल होता है!
धरा भी घूमना रोके ,ये नभ भी लाल होता है!
नरम हाथों से माता के, कभी चोटी थी बंधवाई!
पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई.....
पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई.....
सभी आशीष दे बेटी को, फिर डोली बिठाते हैं!
निभाना सात वचनों को, यही उसको सिखाते हैं!
किसी सम्बन्ध में बेटी कभी तू भेद ना करना,
सहज व्यवहार रखने की, उसे बातें बताते हैं!
निभाना सात वचनों को, यही उसको सिखाते हैं!
किसी सम्बन्ध में बेटी कभी तू भेद ना करना,
सहज व्यवहार रखने की, उसे बातें बताते हैं!
जहाँ बेटी विदा होती, वहां ऐसा ही होता है!
नया एक जन्म होता है, नया संसार होता है!
नया एक जन्म होता है, नया संसार होता है!
बंधी है प्रीत की डोरी, खिली कलियाँ भी मुरझाई!
पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई!
पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई!
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प्रेषिका
गीता पंडित
9 comments:
तीनो ही रचनाये बेहद शानदार भावो से भरी हैं।
बहुत सुंदर भाव लिए कविताएं।
बहुत ही खुबसूरत रचनाये....
behad khubsurat rachnaaye...
तीनो ही रचनाये बेहद शानदार भावो से भरी हैं।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचनाएँ पढवाने का आभार ....
दिल छू गयी ये रचनाएँ.....धन्यवाद
..कभी हमारी गली भी तशरीफ़ लायें
Http://aarambhan.blogspot.com
सुन्दर प्रस्तुति!
सुविचारों एवं यथार्त के धरातल से उत्कीर्ण हुयी उत्करिस्ट रचनाओं के लिए साधुवाद सम्मानित चेतन जी !
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