घर में सुरक्षित नहीं मैं
समाज में देह मात्र
देश बस कहलाने के लियें मेरा देश
क्या सीता बन धरती में समाना
ही एक मात्र विकल्प
मेरे लियें
नहीं ...
आज बुलंद आवाज़ में
मैं इसे नकारती हूँ
यह देश मेरा है
और जीना मेरा अधिकार है
............
( 25 दिसंबर 1012)
.......
एक ही आवाज़
उठनी चाहिए अब
और नहीं
अब और नहीं
अब और नहीं
बस्सस्स...
............
(21 दिसंबर 2012)
......
मैं लज्जित हूँ
अपने आप से
शर्मसार है
मेरी कोख
क्यूंकि
यही तो कारण है
ऐसे दरिंदों को
जन्म देने के लियें
जो मेरे ही प्रतिरूप का शिकार कर
पूर्ण आहूति देते हैं
अपनी पैशाचिक प्रवृति को
धिक्कार है मुझ पर
धिक्कार है
..............
17 दिसंबर 2012
....
मैंने कभी नहीं ललकारा
तुम्हारे पुरुषत्व को
तुमने ललकारा
मेरे स्त्रीत्व को
एक बार नहीं, दो बार नहीं
जाने कितनी बार बरसों सदियों
मेरा प्रेम समर्पित था तुम्हारे लियें
तुम्हारी इच्छाओं के लियें
तुम्हारे सुख-सौंदर्य-वैभव के लियें
कहाँ रास आया तुम्हें
पूजनीया बनाकर
मुझे बना दिया बंधक
भूल गये मेरा मन,
मेरी चेतनता, मेरा प्रेम , मेरा समर्पण
यहाँ तक कि मेरा अस्तित्व
बन गयी अहिल्या
सीता, मांडवी उर्मिला रुक्मणी सी
राह देखती रही तुम्हारी
हाय रे भाग्य ! रह गयी केबल देह मात्र
एक जीवित लाश
मैं भी पगली ! मौन तुम्हारे प्रेम में
नहीं पहचान पायी तुम्हारी छलना को
आज भी नहीं पहचानती
अगर तुमने
नहीं कुचला होता मेरी आत्मा को
मेरे अंतस को
बस अब और नहीं
मैं लडूंगी स्वयं से, तुमसे,
इस समूचे समाज से संसार से
हाँ याद रहे
बचना मेरी राह में आने से
........
( 19 द्दिसम्वर 2012 )
( असीम पीड़ा के साथ , आक्रोश के साथ सभी स्त्रियों की तरफ से )
.......
मेरी पुत्री
समाज के संतुलन के लियें
अनिवार्य है तुम्हारा होना
इसलियें नहीं
कि किया जा सके तुम्हें हलाल
आओ
और उठाओ शस्त्र
स्वयं बनो रणचंडी
.....
18 2012
गीता पंडित
26 दिसंबर 2012
11 comments:
आपकी सभी कवितायेँ बहुत अच्छी हैं समसामयिक हैं
आपकी सभी कवितायेँ बहुत अच्छी हैं समसामयिक हैं
बहुत सुन्दर सामयिक प्रस्तुति!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 27 -12 -2012 को यहाँ भी है
....
आज की हलचल में ....मुझे बस खामोशी मिली है ............. संगीता स्वरूप . .
सशक्त और सार्थक कवितायें...
अनु
umda ....
http://ehsaasmere.blogspot.in/
umda ...
http://ehsaasmere.blogspot.in/2012/12/blog-post_23.htmlbehad
आपकी ये रचनाएँ इतनी सशक्त हैं कि बरबस ही झकझोर जाती हैं ....
बस अब और नहीं
मैं लडूंगी स्वयं से, तुमसे,
इस समूचे समाज से संसार से
हाँ याद रहे
बचना मेरी राह में आने से
बस अब यही चेतावनी देनी है .....
आपकी ये रचनाएँ इतनी सशक्त हैं कि बरबस ही झकझोर जाती हैं ....
बस अब और नहीं
मैं लडूंगी स्वयं से, तुमसे,
इस समूचे समाज से संसार से
हाँ याद रहे
बचना मेरी राह में आने से
बस अब यही चेतावनी देनी है .....
सभी कविताएं बहुत अच्छी लगीं।
सादर
sabhi rachanyen sangrhneey lagi ....ak se badh kr ak ....abhar geeta ji .
Post a Comment