....
......
1
नदी जब निकलती है
अपने यात्रा-पथ पर
तो बेहद शांत संयत और
अनुशासित होती है.
नदी जब यात्रा पूरी करके
मिल रही होती है सागर से
तो भी शांत और संयत ही होती है.
सागर से जा मिलने की व्यग्रता कितनी भी हो
.....
2
वनस्पतियां सुख देती हैं
आंखों को
हरियाली राहत पहुंचाती है मन को.
ह्रदय का जो चक्र है
"अनाहत चक्र" उसका रंग भी तो
हरा है. "तबीयत हरी हो गई"
मुहावरा बना है इसी से.
......
3
पहाड़ का अडिग अविचल रूप
देता है संदेश
डटे रहने का. उसकी ऊंचाई
गला देती है अहंकार को.
अपनी लघुता का एहसास
फ़ालतू उछल-कूद से रोकता है
अपने क़द से बड़ा दिखने की
इच्छा पर लगा देता है
.......
4
बोलना ज़रूरी हो जब-जब भी
अपराध निरा अपराध है
चुप रह जाना. मौक़ा
निकल जाने पर भी
बोलना-बोलते रहना
निरर्थक हो जाता है.
भड़ास निकाल लेने से
राहत मिलती हो जो भी
......
5
चीज़ें बेहतर होंगी
इसी उम्मीद पर
टिकी रहती है ज़िंदगी.
कि आस-पास बनेगा
सुंदर और बेहतर
जैसे देखा जाता है यही सपना
देश-दुनिया को लेकर
आपसी रिश्तों को लेकर.
सामूहिक सपना
होता है साकार
.....
6
फ़िल्मों में
झुग्गी-झोंपड़ियों पर
रात में दिखाए जाते हैं
हमले माफ़िया गुटों के.
असल ज़िंदगी में देखा है
हमने
वैसा ही हमला दिन-दहाड़े
एक संभ्रांत बसावट में
पर
यह हमला
प्रेषिता
गीता पंडित
......
1
नदी जब निकलती है
अपने यात्रा-पथ पर
तो बेहद शांत संयत और
अनुशासित होती है.
नदी जब यात्रा पूरी करके
मिल रही होती है सागर से
तो भी शांत और संयत ही होती है.
सागर से जा मिलने की व्यग्रता कितनी भी हो
उजागर नहीं होती दबी-छुपी रहती है.
नदी का व्यवहार
यात्रा-आरंभ और यात्रा-समापन के बीच
होता है एकदम अलग. शोर-शराबा
मौज-मस्ती
अपने होने की सतत घोषणा
उसके व्यक्तित्व की अनिवार्य विशिष्टताएं
होती ही नहीं दिखती भी है सबको
कुछ लोग नदी होने के यही मायने जानते-समझते हैं.
पर नदी तो नदी है
वह खुद का अनुशासन ही मानती है
जिसके रूप रहते हैं बदलते.
नदी का व्यवहार
यात्रा-आरंभ और यात्रा-समापन के बीच
होता है एकदम अलग. शोर-शराबा
मौज-मस्ती
अपने होने की सतत घोषणा
उसके व्यक्तित्व की अनिवार्य विशिष्टताएं
होती ही नहीं दिखती भी है सबको
कुछ लोग नदी होने के यही मायने जानते-समझते हैं.
पर नदी तो नदी है
वह खुद का अनुशासन ही मानती है
जिसके रूप रहते हैं बदलते.
.....
2
वनस्पतियां सुख देती हैं
आंखों को
हरियाली राहत पहुंचाती है मन को.
ह्रदय का जो चक्र है
"अनाहत चक्र" उसका रंग भी तो
हरा है. "तबीयत हरी हो गई"
मुहावरा बना है इसी से.
वनस्पतियां संचार करती हैं
प्राण-वायु का. इतना सब कुछ
मुफ़्त देती है प्रकृति
कृतज्ञता-ज्ञापन तो बनता ही है
उसके प्रति
इन नियामतों के लिए.
पर ज़रूरी चीज़ों के महत्त्व पर
गौर न करना
शुमार हो चुका है हमारी आदतों में
बुरी आदतों में.
और कृतज्ञता?
हेठी समझते हैं हम
इसे व्यक्त करने में !
भूल जाते हैं हम
संकट से बचाते हैं हमें जो,
वनस्पतियां जिनमें प्रमुख हैं
रंग जल शुद्ध वायु
संभव नहीं जिनके बिना.
प्राण-वायु का. इतना सब कुछ
मुफ़्त देती है प्रकृति
कृतज्ञता-ज्ञापन तो बनता ही है
उसके प्रति
इन नियामतों के लिए.
पर ज़रूरी चीज़ों के महत्त्व पर
गौर न करना
शुमार हो चुका है हमारी आदतों में
बुरी आदतों में.
और कृतज्ञता?
हेठी समझते हैं हम
इसे व्यक्त करने में !
भूल जाते हैं हम
संकट से बचाते हैं हमें जो,
वनस्पतियां जिनमें प्रमुख हैं
रंग जल शुद्ध वायु
संभव नहीं जिनके बिना.
......
3
पहाड़ का अडिग अविचल रूप
देता है संदेश
डटे रहने का. उसकी ऊंचाई
गला देती है अहंकार को.
अपनी लघुता का एहसास
फ़ालतू उछल-कूद से रोकता है
अपने क़द से बड़ा दिखने की
इच्छा पर लगा देता है
अंकुश भी. बहुत कुछ है
अपने परिवेश में जो
कर देता है विवश
ज़मीन पर पैर टिकाए रखने को.
ज़मीन पर न टिके हो पैर
तो कुछ भी तो संभव नहीं
रचनात्मक तो क़तई नहीं !
अपने परिवेश में जो
कर देता है विवश
ज़मीन पर पैर टिकाए रखने को.
ज़मीन पर न टिके हो पैर
तो कुछ भी तो संभव नहीं
रचनात्मक तो क़तई नहीं !
.......
4
बोलना ज़रूरी हो जब-जब भी
अपराध निरा अपराध है
चुप रह जाना. मौक़ा
निकल जाने पर भी
बोलना-बोलते रहना
निरर्थक हो जाता है.
भड़ास निकाल लेने से
राहत मिलती हो जो भी
कारगर बोलने का विकल्प
नहीं बन सकती वह.
सही वक़्त पर बोलना
और सही बोलना
गर्म लोहे पर चोट करने
जैसा असरदार होता है
रचना-जैसा सुख देता है.
नहीं बन सकती वह.
सही वक़्त पर बोलना
और सही बोलना
गर्म लोहे पर चोट करने
जैसा असरदार होता है
रचना-जैसा सुख देता है.
......
5
चीज़ें बेहतर होंगी
इसी उम्मीद पर
टिकी रहती है ज़िंदगी.
कि आस-पास बनेगा
सुंदर और बेहतर
जैसे देखा जाता है यही सपना
देश-दुनिया को लेकर
आपसी रिश्तों को लेकर.
सामूहिक सपना
होता है साकार
सामूहिक प्रयत्नशीलता से ही.
व्यक्ति और उसके हित
हो जाते हैं गौण
वरीयता पा जाते हैं समूह
और सामूहिक हित.
यही लक्षण है पहचान है
सभ्यता और संस्कृति के स्तर की
व्यक्ति और उसके हित
हो जाते हैं गौण
वरीयता पा जाते हैं समूह
और सामूहिक हित.
यही लक्षण है पहचान है
सभ्यता और संस्कृति के स्तर की
.....
6
फ़िल्मों में
झुग्गी-झोंपड़ियों पर
रात में दिखाए जाते हैं
हमले माफ़िया गुटों के.
असल ज़िंदगी में देखा है
हमने
वैसा ही हमला दिन-दहाड़े
एक संभ्रांत बसावट में
पर
यह हमला
लोकतंत्र पर था.
संभ्रांत दिखने वाले चेहरों पर थी एक नई तरह की क्रूरता
भाषा भी नई थी मुहावरा ऐसा जैसा पहले कभी नहीं था सुना
मर्यादा लीर-लीर उड़ गईं धज्जियां शर्म और लिहाज़ की
बदहवास इतने जैसे नष्ट करना ही था बचाने का पर्याय उनके लिए
बचाने को था खुद का हित नष्ट हुई विधि-सम्मत प्रक्रिया
मर गई संवेदना लुट गई नैतिकता
चीर-हरण एक बार फिर हुआ
द्रौपदी का. दिन-दहाड़े एक संभ्रांत बस्ती में
शहर के बीचो-बीच शहर जिसे कहते हैं गुलाबी नगरी.
मोश्रो
संभ्रांत दिखने वाले चेहरों पर थी एक नई तरह की क्रूरता
भाषा भी नई थी मुहावरा ऐसा जैसा पहले कभी नहीं था सुना
मर्यादा लीर-लीर उड़ गईं धज्जियां शर्म और लिहाज़ की
बदहवास इतने जैसे नष्ट करना ही था बचाने का पर्याय उनके लिए
बचाने को था खुद का हित नष्ट हुई विधि-सम्मत प्रक्रिया
मर गई संवेदना लुट गई नैतिकता
चीर-हरण एक बार फिर हुआ
द्रौपदी का. दिन-दहाड़े एक संभ्रांत बस्ती में
शहर के बीचो-बीच शहर जिसे कहते हैं गुलाबी नगरी.
मोश्रो
प्रेषिता
गीता पंडित
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