यह
दिन केवल इसलियें नहीं है कि हम शिक्षकों को एक दिन के लियें याद करें और फिर भूल
जाएँ अपितु इसलियें है कि हम फिर से उन नीतियों को , उन सूक्तियों को ‘मनसा वाचा कर्मणा’ दोहरा सके, जो हमारे शिक्षकों ने हमें दीं थीं और
अपनी आने वाली पीढ़ी के लियें एक ऐसे पथ का निर्माण कर सकें जो उन्हें अँधेरे से
उजाले की ओर उन्मुख करे , सही गलत की पहचान कराये, अच्छे बुरे के अंतर को समझाए और
दे सके ऐसा सुविवेक जो स्वयं उन्हें आशा और विश्वास के बल पर आज भ्रष्टाचार की
मंडी से दूर रख सके कथनी और करनी में
साम्य पैदा कर सके , नैतिक मूल्यों को समझ और समझा सके ....
तभी
आज के दिन का सही मूल्यांकन कर पायेंगे .
प्रकृति
परिवर्तनशील है बदलाव निश्चित है . समय बदला तो विढार्थी बदले , शिक्षक बदले शिक्षा के तौर-तरीके बदले , सही है, बदलाव के लियें स्वीकारोक्ति आवश्यक
है वरना समय किसके लियें रुकता है . समय हठधर्मी है आपको छोड़ आगे बढ़ जाएगा और आप
अपना माथा ठोकते रह जायेंगे, लेकिन ये क्या कि समय इतना बदल जाये कि शिक्षक न तो
शिक्षक से दिखाई दें और ना ही विधार्थी विधार्थी से.
आज
के दिन हम फिर से सोचें कि कहाँ क्या कमी रह गयी जो शिक्षक का व्यवहार दिन-प्रति- दिन
आलोचना के दायरे में खडा हो रहा है या विधार्थियों का व्यवहार शिक्षक के प्रति क्यूँ
शोचनीय या अशोभनीय होता जा रहा है . घोर पीड़ा का विषय है चिंतनीय भी .
अगर
हम समाज को एक सही दिशा देना चाहते हैं तो अति-आवश्यक है कि हम नैतक मूल्यों का
फिर से विवेचन करें . घर तो मुख्यत; इसमें योगदान करता ही है पर शिक्षक का योगदान नकारा
नहीं जा साकता. गीली मिट्टी को कुम्हार की तरह सुंदर ढाँचे में ढालना हो तो शिक्षक
के सिवाय किसका नाम सबसे पहले याद आता है
इसलियें
उसी याद को नमन मेरा शत-शत नमन
शिक्षक
दिवस की अशेष शुभ कामनाएँ ___
मैं
थी माटी
गूंथ
- गूंथकर
तुमने
ही आकार में ढाला
नमन
तुम्हें मेरा गुरुवर.!
नमन
तुम्हें मेरा गुरुवर !
गीता
पंडित
Gieetika1@gmail.com
5 सितंबर 2012
यहाँ भी पढ़ें मुझे ....
http://www.nawya.in/hindi-sahitya/item/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%95-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0.html क्रमशः:
यहाँ भी पढ़ें मुझे ....
http://www.nawya.in/hindi-sahitya/item/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%95-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0.html क्रमशः:
7 comments:
दी नमस्कार जी हाँ बहुत सही बात शिक्षक एक कुम्हार की तरह ही तो है जो मिटटी के मानिंद बच्चे के जीवन में नैतिक और सामाजिक मूल्यों की नीव रखता है लेकिन आज के समय की बात करे तो आज शिक्षा का व्यवसायीकरण होकर रह गया है आज शिक्षक केवल शिक्षा को पैसा कमाने का जरिया मात्र समझते है और विधार्थी उन्हें अपना एक सेवक मात्र क्युकी उनका कहना है हम शिक्षको को शिक्षा अर्जन के लिए पैसा देते है पता नहीं ये आधुनिक सोच हमें विकास के मार्ग पर ले जा रही या फिर........सोचनीय है ये बात.............
आज "शिक्षक-दिवस" के अवसर पर सभी गुरुओं को सादर प्रणाम एवं नमन ...
आज "शिक्षक-दिवस" के अवसर पर सभी गुरुओं को सादर प्रणाम एवं नमन ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बृहस्पतिवार (06-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
बहुत बढिया
बहुत बढिया
अपना खुद घड़ा बनना चाह रहा है
अब ना खुद को गड़ रहा है ना उसे !
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