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नव - वर्ष के नाम नेह की
देख वसीयत कर जाएँ |
किरण चढी जो
चौबारे पर
चौबारे पर
तल में आकर अब वो देखे
हाँडी चूल्हे
पर रखी है
पर रखी है
दाल बिना ये कैसे लेखे
कम्पित हैं तन कम्पित हैं मन
अँखियों में
सपने कब खेले
सपने कब खेले
कचरे में क्या बीन रहे हैं
कहाँ खिलौने
के वो मेले
के वो मेले
विगत हुआ उसको जाने दें
देख नया कुछ कर जाएँ |
बहुत हुए
विस्फोट नेह के
विस्फोट नेह के
नयनों में बहता है सागर
कहीं कांपती
देह धरा की
देह धरा की
बाढ़ सुनामी है मन गागर
कहीं कमल की पाँखुरियों पर
अब भी सूरज
धधक रहा है
धधक रहा है
वहीं देख दुश्शासन को अब
चिड़िया का मन
दहक रहा है
दहक रहा है
दर्पण का मन हो ना मैला
मन सुरभी भरकर जाएँ
नव - वर्ष के नाम नेह की
देख वसीयत कर जाएँ |
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गीता पंडित
(मेरे आने वाले संग्रह से )
10 comments:
अति सुंदर गीताजी ! ’नेह की वसीयत’ अत्यंत पावन भाव और सुंदर कल्पना एवं उपमानों से सजा खूबसूरत गीत ! बधाई !
कहीं कमल की पंखुरियों पर अब भी सूरज धधक रहा है... उम्दा!
bahut sunder geet di....man sochne par vivash ho gaya.....
नेह की वसीयत …………वाह गीता जी बहुत सुन्दर ख्याल्………शानदार प्रस्तुति।
"विगत हुआ उसको जाने दें देख नया कुछ कर जाएँ..नव - वर्ष के नाम नेह की देख वसीयत कर जाएँ !! " आनंद आ गया ! नेह की चाहत हर मन मे बस जाये तो यह धरा स्वर्ग हो जाये ! ईश्वर भी तो नेह चाहता होगा । क्यों न वह मेघ से नेह ही बरसा दे !
Vah geeta ji bahut hi yatharthata ke sath lay me apki rachana lagi ... bahut bahut badhai
आप सभी मित्रों का आभार ...
नव-वर्ष की ढेर सारी शुभ कामनाएँ ..
नव - वर्ष के नाम नेह की
देख वसीयत कर जाएँ |
किरण चढी जो चौबारे पर
तल में आकर अब वो देखे
हाँडी चूल्हे पर रखी है
दाल बिना ये कैसे लेखे
कम्पित हैं तन कम्पित हैं मन
अँखियों में सपने कब खेले
कचरे में क्या बीन रहे हैं
कहाँ खिलौने के वो मेले
विगत हुआ उसको जाने दें
देख नया कुछ कर जाएँ |
बहुत हुए विस्फोट नेह के
नयनों में बहता है सागर
कहीं कांपती देह धरा की
बाढ़ सुनामी है मन गागर
कहीं कमल की पाँखुरियों पर
अब भी सूरज धधक रहा है
वही जाँघ दुश्शासन की है
त्रिया का मन दहक रहा है
दर्पण का मन हो ना मैला
मन सुरभी भर कर जाएँ ........ गीता पंडित
(मेरे आने वाले संग्रह से )... फिर से कुछ बदलाव के साथ साभार प्रस्तुत कर रही हूँ...
बहुत सुन्दर कवितायें...दोनों ही..
सादर.
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