हुई तपेदिक आज देश को
मगर डॉक्टर कोई नहीं
श्वासें टंगी हुई सूली परफिर भी जनता खोई नहीं
सबसे ज़्यादा हाथों वाला
देश मगर बेगारी है सौ करोड़ आँखों वाली माँ
आज बनी बेचारी है
देखो अब तक सोई नहीं
फाड़े जेबें तकती है
लेकिन चेहरों पर खाली पैसों की लटकी तख्ती है
संसद की गलियाँ अब तक भी
अभी कहाँ वो सुबहा आयी
बूढ़े बरगद बड़े अकेले
अब तो उनको अपने दे
आशा की लकुटी ने देखो
भारत (दिल्ली)
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samvedansheel rachna
samvedansheel rachna
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