Thursday, August 13, 2015

हुई तपेदिक आज देश को __गीता पंडित


 

 

हुई तपेदिक आज देश को
मगर डॉक्टर कोई नहीं
श्वासें टंगी हुई सूली पर

फिर भी जनता खोई नहीं


सबसे ज़्यादा हाथों वाला
देश मगर बेगारी है

सौ करोड़ आँखों वाली माँ 
 
आज बनी बेचारी है

 
अच्छे दिन की आस में धरती

देखो अब तक सोई नहीं

 
सुरसा महंगाई की मुँह को

फाड़े जेबें तकती है
लेकिन चेहरों पर खाली

पैसों की लटकी तख्ती है


संसद की गलियाँ अब तक भी
साथ हमारे रोई नहीं


अभी कहाँ वो सुबहा आयी
जो बचपन को सपने दे

बूढ़े बरगद बड़े अकेले

अब तो उनको अपने दे


आशा की लकुटी ने देखो
पीर अभी तक ढोई नहीं.

 
गीता पंडित
भारत (दिल्ली)

 
बिन शाखाओं के देखो तो (दूसरा नवगीत नीचे दिये लिंक पर पढ़ सकते हैं)
http://www.navgeetkipathshala.blogspot.in/