" मैं कविता हूँ | एक हजार वर्ष पहले मेरा जन्म हुआ | कवि चंदवरदाई ने " पृथ्वीराज रासो " महाग्रंथ के ढाई हजार पृष्ठों में मुझे गाया |
"चार बॉस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुलतान है मत चुके चौहान | | "
"विधापति के कंठ से होती हुई राधा-कृष्ण के प्रेम में निमग्न हो गयी लेकिन अमीर खुसरो ने मुझे जन मानस के बीच ला खडा किया
"रोटी जली क्यू
घोड़ा अड़ा क्यूँ
पान सड़ा क्यूँ "...? ... फेरा ना था ...
और कबीर दास के मुख से जन - जन के मन तक पंहुच गयी
"मोको कहाँ ढूँढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में "
रैदास से होती हुई मीरा के साथ नाच उठी कृष्ण के साथ मीरा ने राम में भी मुझे गाया
"रघुनन्दन आगे नाचुंगी "
दिल्ली का सरदार रोहिल्ला पठान .... रसखान के साथ मैं खेलने लगी
"ताही अहीर की छोहरियाँ
छछिया भरी छाछ पे नाच नाचावें | "
आँखें ना होते हुए भी सूर ने मुझे गाया और कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन कर मुझे भक्ति रस से सराबोर कर दिया
'मैया मोरी कबहूँ बढ़ेगी चोटी"
तुलसीदास ने राम कथा के माध्यम से मुझे घर - घर में सुबह शाम गाई जाने लगी |
" जाकी रही भावना जैसे
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी "
भक्ति रस में मैं बहुत समय तक निमग्न रही मुझे अच्छा भी लगता रहा | इसके बाद मुझे रीतिकाल में महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत , सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और कई कवियों ने आत्म- अनुभूति प्रदान की |
"वह तोड़ती पत्थर;
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर।
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार ,
सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार। " निराला के निरालेपन में मैं इस तरह चमकी |
सखी सम्प्रदाय के ललित किशोरी के गीतों पर मैं थिरकने लगी | अब मैं कवि सम्मेलनों की शोभा बढाने लगी | जयशंकर प्रसाद के साथ होती हुई मैथलीशरण गुप्त के साथ खड़ी बोली के रूप में आ खड़ी हुई "यशोदरा" में
"सखी वो मुझसे कहकर जाते "
माखनलाल चतुर्वेदी ने मेरा सौंदर्य बढ़ाया ___
"मुझे तोड़ लेना बन माली औ
उस पथ पर देना तुम फ़ेंक
रामधारी सिंह दिनकर के साथ मैं ओजस्वी रूप लेकर आयी ___
" सिंहासन खाली करो के जनता आती है "
.शंभूनाथ सिंह के साथ मैं कुछ इस तरह आयी __.
" समय की शिला पर मधुर चित्र कितने
किसी ने बनाए, किसी ने मिटाए |
किसी ने लिखी आँसुओं से कहानी
किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूंद पानी
इसी में गए बीत दिन ज़िन्दगी के
गई घुल जवानी, गई मिट निशानी।
विकल सिन्धु के साध के मेघ कितने
धरा ने उठाए, गगन ने गिराए।।"
वीरेंद्र मिश्र, धर्मवीर भारती ___
"मैं
रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ
लेकिन मुझे फेंको मत !
क्या जाने कब
इस दुरूह चक्रव्यूह में
अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ
कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाय !" ...
शमशेर सिंह, दुष्यंत कुमार के साथ मैं गज़ल बनकर चली |
अरे.... लेकिन आज ये ना समझ लेना कि मैं चली गयी...... मैं गीतात्मकता के साथ फिर से लौटूंगी क्यूंकि मैं कविता हूँ संवेदनाओं से जन्मी .... जब तक संवेदनाएं हैं मैं जीवित रहूंगी | ____ गूंजती रही यही आवाज़ मंच पर प्रारम्भ से अंत तक कविता की जो अभी भी गूँज रही है.मेरे कानों में जिसे आवाज़ दी और मंचित किया ___सौदामिनी राव आवडे ने |
चंदरवरदाई से लेकर धर्मवीर भारती तक की चुनी हुई कविताओं को नृत्य व अभिनय के साथ प्रस्तुत किया गया जो राष्ट्रभाषा के काव्यमय इतिहास के साथ सामाजिक मूल्यों को भी प्रस्तुत करने में सक्षम रहा |
'श्रीराम भारतीय कला केन्द्र में हिन्दी अकादमी द्वारा प्रस्तुत नाट्य उत्सव की पहले दिन की प्रस्तुति " हिन्दी काव्य परम्परा " पर नृत्य नाटिका .... परिकल्पना लेखन और निर्देशन __ राजनारायण बिसारिया |, नृत्य-निर्देशन व नर्तन... पदमश्री शोभना नारायण .जिनकी अदभुत अभिनय क्षमता ने मन मोह लिया | व्यक्तिगत रूप से उनसे मिलना हुआ | मेरे हाथ में वो गर्माहट अभी भी आभासित हो रही है | गुरु भूमिकेश्श्वर सिंह, प्रतिभा जेना सिंह की नृत्य -नाट्य कला ने सभी को आकर्षित किया |
यह प्रस्तुति " हिन्दी काव्य परम्परा " एक आशा की किरण लेकर आयी है कि कविता जीवित थी और जीवित रहेगी | जब तक जीवन है तब तक संवेदनाएं हैं और जब तक संवेदनाएं है तब तक कविता है रूप, वेष बदलने के बाद भी कविता जीवित रहेगी |
आभारी हूँ हिन्दी अकादमी दिल्ली की जिसने कविता के इतिहास को सहजता के साथ जन-जन तक पंहुचाने का ना केवल प्रयास किया अपितु उस समय विशेष में दर्शक को लेजाकर खडा कर दिया जहां अपनी आँखों से कवियों को देखा और सुना | यह विशेष सराहनीय पक्ष रहा |
जितना मुझे याद आता गया मैं लिखती गयी ....बहुत कुछ छूट गया है ...क्षमा चाहती हूँ....
आज की संध्या में मुझे लगा कि मैंने कुछ पल जिये..... भरपूर जिये ... नमन |
गीता पंडित
26 comments:
बहुत सुन्दर वर्णन/चित्रण.साधुवाद
वाह आपकी कलम का जवाब नहीं
वाह आपने तो पूरा खाका ही खींच दिया…………आभार्।
कविता के विभिन्न काल,वाद ,शिल्प,भाव सभी को एक सूत्र में बाँधकर आप ले कर आयीं और हमारे सामने ये शब्द पोटली खोल दी और हमने इन्हें स्मृतियों में फिर से बांध लिया .......मनमोहक !
फेसबुक से
Ashok Aggarwal
आपका वर्णन प्रशंसनीय है दीदी , इतना कुछ समेट लाना किसी कार्यक्रम से , मुश्किल होता है .
फेसबुक से
Kavi Anil Carpenter
kavita ki yatra ka
lajwab varnan
kiya hai ,
@
शब्द बदले
मान बदले
काव्य की
धारा बदली
आज है
उस मोड़ पर
कवितायेँ बन गयी
अब तो पहेली
झूठ की बातेँ
हास्य भी फूहड़
द्विअर्थी भावार्थ बोलते
अब तो कविता के
रखवाले
मान मिले बस उनको ही
जो चुरा चुरा कर लाते ।।
KAVI@NIL
Mohan Shrotriya
बहुत अच्छा लिखा है. लगता है, जैसे हम प्रस्तुति देख रहे हों. बधाई.
Mahesh Rathi
can u give me contact /arrnge my meeting or talk with geeta pandit as marwadi mahasabha is intrested in such project.
Gita Dev
Bahut sunder .... Aapne kavita ko ek jeevant prastuti ka roop de diya hai .......
Shikha Varshney
हम तो झलक देख ही तृप्त हो लिए गीता जी ! सहेजने लायक लिखा है आपने.
Sangeeta Swarup
बहुत सुन्दर झलक ..कविता का इतिहास दिखाई दिया .. आभार
Rajesh Chadha ...
WAH GITA JI...JAISE......SAJEEV-PRASARAN........AABHAAR
Kavita Vachaknavee
योजना तो अच्छी लग रही है किन्तु ऐसे प्रसंगों में इन्हें इतिहास के साथ जोड़ कर देखना या तार्किकता और तथ्यात्मकता की अपेक्षा करना कुछ ज्यादती हो जाती है। कुछ रचनाकारों के उल्लेख आए , कुछ के नहीं ; यह स्वाभाविक है, क्योंकि नृत्यनाटिका इतिहास लेखन नहीं है। हाँ इतिहास लेखन में जिन्होंने गड़बड़ियाँ की हैं, या करते हैं, उन्हें अवश्य कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए ।
Sonroopa Vishal
कविता के कई काल ,वाद ,शिल्प,भाव के संक्षिप्त से सूत्र को आप पिरो लायीं और हमें ये काव्यमयी सौगात सौपी ...........आभार आपका !
Girish Pankaj
geetatmakataa ko lautana hi hogaa. vo mauzood hai. jab tak tathaakathit aalochak zindaa hain, geetatmakataa hashiye par hai. vo fir aayegi. binaa geet ke bhi jeevan jeevan ho sakata hai bhala...?
Rajesh Chadha ....
shayad....jab alag alag kaal aur avadhi ke aadhaar par laghu prastui-karan kiya jata hai....tab chayan ... soojh-boojh ki darkaar rakhta hai.....aise me kabhi-kabhi .... kuchh rah bhi jata hai......... gita ji ke ...aalekhanusaar......ye ..aayojan..... achhaa ban pada hai....
Anurag Arya
निसंदेह आप का प्रयास प्रशंसनीय है ..सुखी गृहस्थन पर लिखी किसी कवियत्री की पंक्तिया याद आती है .....
पुराने नौकर को ?देरी से काम करने की आदत पर /बहुत डांटा/प्यारे बच्चे को शैतानी मचाने पर /लगाया करार चांटा /रसोई की अलमारिया झाड़ी / मसाले के डब्बे किये साफ़ /फिर भी /अभी तक ऑफिस से लौटे नहीं आप.....
Mahesh Rathi
hindi ke kavio ne kabhi socha ki sare kavio ki kavita se jyada ''hanuman chalisha'' kyo logo ko yad he...sahaj lagati he.......ek kahani,avichar jab itana swikarya hua he to in tathakatit duruh kavio ki vaicharikata me kaha kumi rah gayi he?mun me dukh hota he jab hindi ki durdasa dekhata hu.kavita ko janata se jadane ki jarurat he......hindi me to rashtra geet/rashtra gayan bhi nahi .... bhale hi ye rashtra bhasha kyo na kahla rahi he.marwadio ne hindi ke liye apni marwadi bhasha tyag di ....hindi ke kavio ko kya alochk ki nazar ke adhar pe kavita likhni chahiye?
Ravi Mishra ·
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एक यादगार संध्या जो कवितामयी हो गयी
देखो इस संध्या में इक शंमा शंमा में खो गई !
Atul Kanakk
रसूल हमजातोव याद आ गये, जिन्होंने लिखा था- कविता नहीं होती तो मैं यतीम ही होता।
Praveen Pandit
संपूर्ण प्रस्तुति 'रि-प्ले ' की तरह सजीव | गीता जी को धन्यवाद | साथियों ! इस भाव पूर्ण मंचन का दर्शक श्रोता बनना मुझे भी नसीब हुआ | जैसे किसी दूसरे ग्रह से होकर आ गया | पढ़ना अलग बात है , लेकिन मिलना हुआ चंदर वरदाई ,खुसरो , कबीर , रसखान , ललित किशोरी , सूर , तुलसी , मीरा , नरोत्तम दास , मैथिली शरण गुप्त , माखन लाल चतुर्वेदी , दिनकर , धर्मवीर भारती आदि आदि आदि | सांगोपांग वही वेशभूषा , बोलचाल , वातावरण , गीतों के बोल , बोलों पर थिरकते , ठुमकते पाँव -- नर्तक कलाकारों की भाव भंगिमा | क्या कहूँ ? आयोजकों का प्रयास -प्रस्तुति दोनों प्रशंसनीय | अब प्रतीक्षा है भारती जी से आगे के कवि - गीतकारों की | कोई तो उनके अनमोल बोलों को प्रत्यक्ष रूप देकर सामने लाएगा और एक बार फिर उस दिव्य- दर्शन मे दर्शकों मे बैठा हूंगा मैं भी |
Maya Mrig
कविता जीवित थी और जीवित रहेगी | जब तक जीवन है तब तक संवेदनाएं हैं और जब तक संवेदनाएं है तब तक कविता है रूप, वेष बदलने के बाद भी कविता जीवित रहेगी ....... किसी को संदेह हो तो हो....मुझे तो नहीं
Misir Arun
गीता जी ,गीतात्मकता के लौटने का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि वह कहीं गयी ही नहीं ,गीत,गज़ल के रूप में वह आज भी हमारे बीच उपस्थित है ,लोकप्रिय है ! हाँ पुराने रूप विधान और भाषा में बदलाव अवश्य आया है और वह आना भी चाहिए लेकिन गीत तो है और जमा हुआ है अपनी जगह ! सुन्दर,उदात्त काव्य,यदि गेय छंदों में प्रस्तुत हों तो सोने पे सुहागा !मेरा मानना है कविता को लेकर कोई वाद नहीं फैलाना चाहिए और हर तरह की कविता का स्वागत किया जाना चाहिए ,और न ही किसी रूप का विरोध ही होना चाहिए !
जी .... गीतात्मकता की आशा पर आयोजकों ने समापन किया था ... मैं आपसे सहमत हूँ ...इसीलियें मैंने कहा हर वेष में, हर रूप में , हर भाषा में कविता जीवित रहेगी.... Misir Arun जी... बदलाव तो प्रकृति का नियम है ...जो ज़रूरी है... वरना एकरसता आ जायेगी....
मेरी राजनारायण बिसारिया जी .... जो इस "काव्य परम्परा के लेखक थे .... से बात हुई उनका कहना है चार स्तंभों में से सशक्त को लिया..... स्त्री लेखन की बात नहीं है एक को लेना था सो निराला जी तीनों पर भारी पड़े ...
यूँ तो कविता के आयोजन हर जगह हो रहे हैं ... लेकिन इस आयोजन की विशेषता यह थी कि यह काव्य की परम्परा के इतिहास को लेकर चला था .... वे कवि जिन्हें आज भुलाया जा चुका है फिर से हमारे समक्ष उपस्थित थे उसी वेष-भूषा में , उसी वातावरण में उसी कहन में.....
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