Friday, March 2, 2018

रंग लगाकर पालथी बैठ गये हर पोर-- गीता पंडित


होली पर रंगभरी शुभकामनाओं के साथ यह नवगीत आप सभी को समर्पित

 .........

रंग लगाकर पालथी बैठ गये हर पोर--

रंग लगाकर पालथी बैठ गये हर पोर
द्वारे ड्योढ़ी गा उठे करें खिड़कियाँ शोर

बाट जोहती
गलियों के चेहरे हुए गुलाल
ढोल बजाता जब आया टेसू
हीरा लाल


उचक-उचककर वेणियाँ
हाथ हिला मुसकाय
शर्माता वो
नील रंग छुप-छुप कर बतियाय

धड़कन ने ताली बजा बाँधी जीवन डोर
सुगना की चूनर उड़ा मचली पवन विभोर
द्वारे-ड्योढ़ी गा उठे करें खिड़कियाँ शोर

गली-गली के
हाथ में पिचकारी भरपूर
भाँग चढाकर आँगना हुआ
नशे में चूर

दीवारों के तन सजे
सतरंगी परिधान
सपनों की चौपाल पर
छाई रंगी शान

नर्तन फिर करने लगी श्वास-श्वास हर छोर
भीगी बदली हो गयी नयनों की हर कोर
द्वारे-ड्योढ़ी गा उठे करें खिड़कियाँ शोर ||

गीता पंडित

'शेष रहे आलाप' 20 17 मेरे नवगीत संग्रह में प्रकाशित

            और

(नवगीत की पाठशाला -होली विशेषांक 2018 में भी )

5 comments:

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति
आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-03-2017) को "होली गयी सिधार" (चर्चा अंक-2899) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Parmeshwari Choudhary said...

बहुत सुन्दर

शिवम् मिश्रा said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अंग्रेजी बोलने का भूत = 'ब्युटीफुल ट्रेजडी'“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

संजय भास्‍कर said...

होली की हार्दिक शुभकामनाएं :)