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......
जिसने जाना नही इस्लाम
वो है दरिंदा
वो है तालिबान...
सदियों से खड़े थे चुपचाप
बामियान में बुद्ध
उसे क्यों ध्वंस किया तालिबान
इस्लाम भी नही बदल पाया तुम्हे
ओ तालिबान
ले ली तुम्हारे विचारों ने
सुष्मिता बेनर्जी की जान....
कैसा है तुम्हारी व्यवस्था
ओ तालिबान!
जिसमे तनिक भी गुंजाइश नही
आलोचना की
तर्क की
असहमति की
विरोध की...
कैसी चाहते हो तुम दुनिया
कि जिसमे बम और बंदूकें हों
कि जिसमे गुस्सा और नफ़रत हो
कि जिसमे जहालत और गुलामी हो
कि जिसमे तुम रहो
और रह पायें तुम्हे मानने वाले...
मुझे बताओ
क्या यही सबक है इस्लाम का..
........
अनवर सुहैल
कुछ अफगानी लड़कियाँ ___
कुछ अफगानी लड़कियाँ
छुप- छुप कर
पश्तो में लिखती हैं कविता
कविता में लिखती हैं स्कूल
स्कूल की खिड़कियों से शायद नीला नजर आ जाये काला आसमान,
स्कूल की दीवारें सिमटेंगी नहीं कुछ इंच हर रोज़ उसकी तरफ,
स्कूल के रास्ते में कोई तालिबानी किताबें बांटेगा उसे हर सुबह,
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं उम्मीद,
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं उम्मीद
उप्पर से बरसेगा सिर्फ पानी
बम नहीं,
अगली बारिशों में
मिट्टी से धूल जाएंगी खून की पर्ते
जमीनो में बीछेंगी फसल, बारूद नहीं
कुछ अफगानी लड़किया ,कविता में लिखती हैं अमन
कुछ अफगानी लड़किया ,कविता में लिखती हैं अमन
जेहाद गरीबी से करो ,
धमाको से भूख नहीं मिटती, खुदा के ठेकेदारो
खुदा के ठेकेदारो
मजहब सिर्फ मर्दो का खैरख्व्ह नहीं,
हर चहरे में अल्लाह बसर करता हैं
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं इबादत
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं इबादत,
किताबें पाक मे कहा तय हैं तुम्हें हमारी किस्मत का हक
हम ना कर देंगी तुम्हारे निशान को पेट में रखने से नौ महिना
इसी पनाह के बदले में ही देते हो ये कैद ...???
घरो के पिंजरे
टूट जाएंगे एक दिन
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं उड़ान
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं उड़ान
उड़ चले की यह दुनिया गैर इंसानी हैं
सरहदें सिर्फ कौमो को बाँट सकती हैं
दमन का कोई मुल्क नहीं होता
इस् पार जलाते हैं , उस पार लूटी जाती हैं.....
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं इज्जत
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं इज्जत,
करते हैं फैसला ...दुध्मुहेपन में सगाई
गुड़ियों गुड्डो की शादी
बेवक्त विधवा ... देवर का घर बसाई
बगावत तो जिंदा जलायी
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं प्रेम
कुछ अफगानी लड़कियाँ , कविता में लिखती हैं प्रेम
कविता में पूछती हैं प्रश्न
कविता में ही देखती हैं सपने
कविता में ही तलाशती हैं अपना वजूद
कविता में पाती हैं कारण अपने होने का
कुछ अफगानी लड़कियाँ , खुद को जीवित रख पाती हैं सिर्फ कविताओं में ही,
कुछ अफगानी लड़कियाँ , कविताओं में लिखती हैं मौत
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भरत खुल्बे
प्रेषिता
गीता पंडित
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जिसने जाना नही इस्लाम
वो है दरिंदा
वो है तालिबान...
सदियों से खड़े थे चुपचाप
बामियान में बुद्ध
उसे क्यों ध्वंस किया तालिबान
इस्लाम भी नही बदल पाया तुम्हे
ओ तालिबान
ले ली तुम्हारे विचारों ने
सुष्मिता बेनर्जी की जान....
कैसा है तुम्हारी व्यवस्था
ओ तालिबान!
जिसमे तनिक भी गुंजाइश नही
आलोचना की
तर्क की
असहमति की
विरोध की...
कैसी चाहते हो तुम दुनिया
कि जिसमे बम और बंदूकें हों
कि जिसमे गुस्सा और नफ़रत हो
कि जिसमे जहालत और गुलामी हो
कि जिसमे तुम रहो
और रह पायें तुम्हे मानने वाले...
मुझे बताओ
क्या यही सबक है इस्लाम का..
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अनवर सुहैल
कुछ अफगानी लड़कियाँ ___
कुछ अफगानी लड़कियाँ
छुप- छुप कर
पश्तो में लिखती हैं कविता
कविता में लिखती हैं स्कूल
स्कूल की खिड़कियों से शायद नीला नजर आ जाये काला आसमान,
स्कूल की दीवारें सिमटेंगी नहीं कुछ इंच हर रोज़ उसकी तरफ,
स्कूल के रास्ते में कोई तालिबानी किताबें बांटेगा उसे हर सुबह,
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं उम्मीद,
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं उम्मीद
उप्पर से बरसेगा सिर्फ पानी
बम नहीं,
अगली बारिशों में
मिट्टी से धूल जाएंगी खून की पर्ते
जमीनो में बीछेंगी फसल, बारूद नहीं
कुछ अफगानी लड़किया ,कविता में लिखती हैं अमन
कुछ अफगानी लड़किया ,कविता में लिखती हैं अमन
जेहाद गरीबी से करो ,
धमाको से भूख नहीं मिटती, खुदा के ठेकेदारो
खुदा के ठेकेदारो
मजहब सिर्फ मर्दो का खैरख्व्ह नहीं,
हर चहरे में अल्लाह बसर करता हैं
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं इबादत
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं इबादत,
किताबें पाक मे कहा तय हैं तुम्हें हमारी किस्मत का हक
हम ना कर देंगी तुम्हारे निशान को पेट में रखने से नौ महिना
इसी पनाह के बदले में ही देते हो ये कैद ...???
घरो के पिंजरे
टूट जाएंगे एक दिन
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं उड़ान
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं उड़ान
उड़ चले की यह दुनिया गैर इंसानी हैं
सरहदें सिर्फ कौमो को बाँट सकती हैं
दमन का कोई मुल्क नहीं होता
इस् पार जलाते हैं , उस पार लूटी जाती हैं.....
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं इज्जत
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं इज्जत,
करते हैं फैसला ...दुध्मुहेपन में सगाई
गुड़ियों गुड्डो की शादी
बेवक्त विधवा ... देवर का घर बसाई
बगावत तो जिंदा जलायी
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं प्रेम
कुछ अफगानी लड़कियाँ , कविता में लिखती हैं प्रेम
कविता में पूछती हैं प्रश्न
कविता में ही देखती हैं सपने
कविता में ही तलाशती हैं अपना वजूद
कविता में पाती हैं कारण अपने होने का
कुछ अफगानी लड़कियाँ , खुद को जीवित रख पाती हैं सिर्फ कविताओं में ही,
कुछ अफगानी लड़कियाँ , कविताओं में लिखती हैं मौत
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भरत खुल्बे
प्रेषिता
गीता पंडित
2 comments:
दोनों कवितायेँ बेहतरीन हैं। पढवाने के लिए आभार।
samajik chintaon ki goonj dono hi rchnakaaron me hai jo kahin n kahin sahity ko poshit kr rhi hai.
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