....
.....
हिंदी में लिखना, हिंदी में पढ़ना, मेरे लियें हिंदी को अपनाना है
आप सभी को हिंदी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ ..
कुछ है ऐसा ____
देह के बलात्कार पर
फाँसी
आत्मा के बलात्कार पर
सर्वत्र मौन
देह के हर कोण में सुनामी
रोज़ बहना
रोज़ बचना
हर पल मरना
हर पल जीना
सिलसिला ताउम्र चलता हुआ
स्वाभिमान का इतिहास हो जाना
श्वासों का आना जाना
मात्र उपक्रम
किसने जानी
तन की शालीनता
किसने पहचानी मन की दीवानगी
किसने जाना प्रेम
परत-दर-परत
उलांघता हुआ कायिक परिदृश्य
बेनामी मुखौटे
बेनामी रिश्ते-नाते
जिसके लियें जीना
उसका ही अपने आप से अनभिज्ञ होना
अंधे संस्कारों की लाश ढोना
बिना सिसकी
बिना आँसू बहाये
रात दिन का असहज रोना
सपनों का छटपटाना
ज़िंदगी का धीमे से उतरना अँधेरे गुमशुदा तहखानों में
असहाय बेबस निर्लज्ज पलों में
कुछ है ऐसा
जो पैदा करता है जीने की लालसा फिर-फिर |
.......
गीता पंडित
14 सितम्बर 2013
यह जीवन की कविता है रहेगी हमेशा अधूरी, अशेष जीवन की तरह ..
.....
हिंदी में लिखना, हिंदी में पढ़ना, मेरे लियें हिंदी को अपनाना है
आप सभी को हिंदी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ ..
कुछ है ऐसा ____
देह के बलात्कार पर
फाँसी
आत्मा के बलात्कार पर
सर्वत्र मौन
देह के हर कोण में सुनामी
रोज़ बहना
रोज़ बचना
हर पल मरना
हर पल जीना
सिलसिला ताउम्र चलता हुआ
स्वाभिमान का इतिहास हो जाना
श्वासों का आना जाना
मात्र उपक्रम
किसने जानी
तन की शालीनता
किसने पहचानी मन की दीवानगी
किसने जाना प्रेम
परत-दर-परत
उलांघता हुआ कायिक परिदृश्य
बेनामी मुखौटे
बेनामी रिश्ते-नाते
जिसके लियें जीना
उसका ही अपने आप से अनभिज्ञ होना
अंधे संस्कारों की लाश ढोना
बिना सिसकी
बिना आँसू बहाये
रात दिन का असहज रोना
सपनों का छटपटाना
ज़िंदगी का धीमे से उतरना अँधेरे गुमशुदा तहखानों में
असहाय बेबस निर्लज्ज पलों में
कुछ है ऐसा
जो पैदा करता है जीने की लालसा फिर-फिर |
.......
गीता पंडित
14 सितम्बर 2013
यह जीवन की कविता है रहेगी हमेशा अधूरी, अशेष जीवन की तरह ..
No comments:
Post a Comment