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.....
हाँ सुकन्या __
हाँ, सुकन्या!
यह नदी में बाढ़-सी तुम
कहाँ उमड़ी जा रही हो
उधर बड़का हाट -
उसमें तुम बिलाओगी
राजपथ पर
रोज़ ठोकर खाओगी
हाँ, सुकन्या!
वहाँ जा कर भूल जाओगी
गीत यह जो गा रही हो
अरी परबतिया!
यही पर्वत तुम्हारा है ठिकाना
यहीं से जन्मी
इसी में तुम समाना
हाँ, सुकन्या!
दूर के ढोल/सुन कर जिन्हें
तुम भरमा रही हो
इधर देखो
यही आश्रम है तुम्हारा
जिसे पूरखों ने
तपस्या से सँवारा
हाँ, सुकन्या!
सुख मिलेगा यहीं सारा
खोजती तुम जिसे अब तक आ रही हो
......
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हाँ सुकन्या __
हाँ, सुकन्या!
यह नदी में बाढ़-सी तुम
कहाँ उमड़ी जा रही हो
उधर बड़का हाट -
उसमें तुम बिलाओगी
राजपथ पर
रोज़ ठोकर खाओगी
हाँ, सुकन्या!
वहाँ जा कर भूल जाओगी
गीत यह जो गा रही हो
अरी परबतिया!
यही पर्वत तुम्हारा है ठिकाना
यहीं से जन्मी
इसी में तुम समाना
हाँ, सुकन्या!
दूर के ढोल/सुन कर जिन्हें
तुम भरमा रही हो
इधर देखो
यही आश्रम है तुम्हारा
जिसे पूरखों ने
तपस्या से सँवारा
हाँ, सुकन्या!
सुख मिलेगा यहीं सारा
खोजती तुम जिसे अब तक आ रही हो
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शपथ तुम्हारी ___
शपथ तुम्हारी
हाँ, नदिया- पहाड़ जंगल
है शपथ तुम्हारी !
मरने नहीं उसे देंगे हम
जो तुमने है सौंपी थाती
यानी सपने, ढाई आख़र
औ' दीये की जलती बाती
होने कभी नहीं
देंगे हम
अपने पोखर का जल खारी !
संग तुम्हारे हमने पूजे
इस धरती के सभी देवता
ग्रह-तारा-आकाश-हवाएँ
भेजा सबको रोज़ नेवता
तुलसीचौरे की
बटिया की
हमने है आरती उतारी !
नागफनी के काँटे बीने
और चुने आकाश-कुसुम भी
हमने सिरजे धूप-चाँदनी
बेमौसम के रचे धुँध भी
सारी दुनिया के
नाकों पर
गई हमारी विरुद उचारी !
हाँ, नदिया- पहाड़ जंगल
है शपथ तुम्हारी !
मरने नहीं उसे देंगे हम
जो तुमने है सौंपी थाती
यानी सपने, ढाई आख़र
औ' दीये की जलती बाती
होने कभी नहीं
देंगे हम
अपने पोखर का जल खारी !
संग तुम्हारे हमने पूजे
इस धरती के सभी देवता
ग्रह-तारा-आकाश-हवाएँ
भेजा सबको रोज़ नेवता
तुलसीचौरे की
बटिया की
हमने है आरती उतारी !
नागफनी के काँटे बीने
और चुने आकाश-कुसुम भी
हमने सिरजे धूप-चाँदनी
बेमौसम के रचे धुँध भी
सारी दुनिया के
नाकों पर
गई हमारी विरुद उचारी !
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ज़रा सुनो तो ___
ज़रा सुनो तो
घर-घर में अब गीत हमारे
गूँज रहे हैं !
यहाँ चिता पर हम लेटे
हैं धुआँ हो रहे
और देह के कष्ट हमारे
सभी खो रहे
पार मृत्यु के
हम जीवन की नई पहेली
बूझ रहे हैं !
मंत्र रचे थे
हमने धरती के सुहाग के
जो साँसों में दहती हर पल
उसी आग के
उन्हीं अनूठे
मंत्रों से सब नए सूर्य को
पूज रहे हैं !
अंतिम गीत हमारा यह
रह गया अधूरा
हाँ, कल लौटेंगे हम
इसको करने पूरा
काल द्वीप पर
नए-नए सुर-ताल हमें अब
सूझ रहे हैं !
घर-घर में अब गीत हमारे
गूँज रहे हैं !
यहाँ चिता पर हम लेटे
हैं धुआँ हो रहे
और देह के कष्ट हमारे
सभी खो रहे
पार मृत्यु के
हम जीवन की नई पहेली
बूझ रहे हैं !
मंत्र रचे थे
हमने धरती के सुहाग के
जो साँसों में दहती हर पल
उसी आग के
उन्हीं अनूठे
मंत्रों से सब नए सूर्य को
पूज रहे हैं !
अंतिम गीत हमारा यह
रह गया अधूरा
हाँ, कल लौटेंगे हम
इसको करने पूरा
काल द्वीप पर
नए-नए सुर-ताल हमें अब
सूझ रहे हैं !
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संपादिका
गीता पंडित
(कविता कोश) से साभार
1 comment:
बेहद उम्दा रचनायें।
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