पुस्तक समीक्षा
मौन पलों का स्पंदन : गीता पंडित
पुस्तक परिचय: नाम पुस्तक – मौन पलों का स्पंदन ,कवयित्री –गीता पंडित ,
प्रकाशक – काव्य प्रकाशन ,
मुद्रण – आर ॰ के ॰ ऑफसेट दिल्ली ,
मूल्य -150 रुपये ,
पृष्ठ 128,
प्रथम संस्करण 2011
सृजन की चाह व्यक्ति की आदिम चाह है | प्रकृति की भाँति व्यक्ति भी स्वयं को विविध माध्यमों एवं कला रूपों में रचना ,अभिव्यक्ति करता आया है | प्रत्येक देश और प्रत्येक भाषा में मानवीय सृजन , चिंतन , शिल्पगत कौशल और जीवन जगत के विविध रूपों की उत्कर्षपूर्ण रचनाओं का शानदार इतिहास आज भी सुरक्षित है | उन्हें देखकर तथा उनका अनुशीलन आने वाली पीढ़ियाँ सृजन के नए प्रतिमान रचती आई है |
कविता कर्म की भाववाचक संज्ञा है |अन्तर्मन में उठने वाले भावांदोलन प्रवाह है जो शब्दों की सिकता पर अनगिन शंख-सीपियों के आलेख छोड़ जाता है | कविता मात्र शब्द नहीं , हृदय –वृन्त पर खिला ऐसा शब्द-प्रसून है , जिसमें अन्तः स्वरों की गंध बसी होती है | यह गंध ही उसका स्वत्व है , उसकी नैसर्गिक पहचान है | काव्य- शास्त्रियों की भाषा में रमणीय अर्थ है जो शब्द के पोर पोर में ऐसा समाया हुआ है कि उसे पृथक नहीं किया जा सकता |
यह सही है कि कविता शक्ति है , किन्तु विध्वंसक शक्ति नहीं है | वह शिवत्व से संपृक्त सर्जनात्मक शक्ति है | इसलिए उसका उद्देश्य अमरणीय को भी रमणीय , असुंदर को भी सुंदर बनाकर प्रस्तुत करना है | ऐसा ही प्रयास गीता पंडित का है जिन्होने अपनी नवीन काव्य कृति-मौन पलों का स्पंदन – में बखूबी किया है | गीता पंडित एक युवी कवयित्री है जिसने अपने मन के भावों को प्रकट करने के लिए काव्य विद्या को चुना है | इनकी कविताएँ मर्मस्पर्शी व उत्कृष्ट काव्य की प्रस्तुति है | गीता पंडित के काव्य में ऐसा स्पंदन है जो इसे पढ़ने को करता है | ‘मौन पलों का स्पंदन ‘कृति में 70 कविताएँ हैं जो बहुत ही सुंदर व आकर्षक हैं |
‘लेखनी से झर रहे जो ‘ कविता में स्वर की देवी माँ सरस्वती की वंदना कर साहित्य धर्म का पालन कर आशीष प्राप्त किया है | एक बानगी देखिए—
भाव से भर आओ माते ! / गीत बन जाऊँ तुम्हारा
रागिनी बन कर तुम्हीं को / गुनगुनाती साथ आऊँ
माँ ! तुम्हारी आरती का दीप बन मैं जगमगाऊँ |
कवयित्री गीता पंडित ने कविताओं के माध्यम से अपने मन के भावों को सहज रूप में उकेरा है |’ आज तुम्हारे बिना किससे ‘ कविता में ये पंक्तियाँ निश्चित रूप से गीता के संदेश को सार्थक करती हैं |
जन्म- मरण का खेल पुराना / माटी का तन मान रही हूँ
गीता का संदेश मन से / मन के अंदर जान रही हूँ |
कविता उपदेश नहीं, अपितु इस प्रयोजन की सिद्धि के लिए यदि उसे समाज को दिशा बोधक उपदेश देने की भूमिका निभानी पड़े तो उस उपदेश का स्वरूप भी कांता सम्मित होना आवश्यक माना गया है | अपने भावों का कवयित्री ने इन पंक्तियों में उल्लेख किया है –
आते – जाते कितने / भाव नदी संग बह जाते
न जाने क्यूँ भाव तुम्हारे /अन्तर्मन ढल जाते हैं
अनेक कविताएँ मन के भावों को प्रेम रस में अभिव्यक्त करती हैं |कवयित्री ने जिस स्नेहमयी रंग में डूब कर इस कृति की रचना की है , सराहनीय है | ऐसी कृतियों के रचनाकार वास्तव में बहुत ही संवेदनशील , करुणामयी और ममतामयी पक्ष को प्रकट करते हैं |इसी तरह कविता के साथ साथ कवि के सामाजिक सरोकार जुडते हैं | वह समाज की देह में व्याप्त अशिव रूपी विष का शमन करने के लिए शब्दों का कलेवर धारण करती है | प्राचीन मनीषियों ने काव्य के इसी प्रयोजन को शिवेतर की क्षति कहा है | एक अन्य कविता की यह बानगी देखिए –
प्रीत-साध्वी सीता बन कर /वन-वन प्रियतम ढूँढ रही
प्रीत मांडवी की लाचारी / संग प्रियतम पर मूक रही
इसी प्रकार ‘ मन के पाखी ‘ कविता में कवयित्री ने बहुत ही सुंदर ढंग से अपने मन भावों को उकेरा है –
कलरव मन /डाली पर सुनती /प्रीत बावरी /पल पल बुनती
ओढ़ दुशाला / प्रीत का मीते /प्रेम सदन / बन कर सो जाते
मौन पलों का स्पंदन में अन्य अनेक कविताएँ स्नेहमयी प्रसंगों का सांगोपांग वर्णन करती हैं |यह स्नेह ईश्वर के प्रति ,मातृशक्ति के प्रति , अपने प्रियतम , बालक , बड़ों व अपने आसपास की वस्तुओं के प्रति परिलक्षित होता है | क्यूँ सूनी अन्तर में धरा , मत कहो अनकहा , पीर मुझको गा रही , फिर से छेड़ी तान पल ने , प्रेम , मौन मन वट-वृक्ष पर , नीर गान छलकाए , प्रीत का जो पृष्ठ पहला आदि कविताएँ भी भावपूर्ण व शब्द- शिल्प की दृष्टि से स्तरीय बन पड़ी हैं |
इस कृति की रचनाएँ सरल व सहज भाषा में लिखी गईं हैं | कवयित्री ने एक ऐसी कृति का सृजन किया है जो आने वाले वर्षों में लोकप्रिय होगी | काव्य प्रकाशन हापुड़ से छपी इस कृति की साज-सज्जा व मुखावरण बहुत ही आकर्षक व रोचक है | ‘ मौन पलों का स्पंदन ‘ का मुखावरण पृष्ठ सहज ही मौन पलों को प्रत्यक्ष रूप से प्रकट करता है | आजकल गद्य विद्या में कविताएँ सृजन की प्रवृति शीर्ष पर है | बात यह नहीं है कि काव्य में कौन सी विद्या अपनाई गई है , महत्वपूर्ण यह है कि अपने भावों की अभिव्यक्ति सहज रूप से पाठकों का केंद्र बने |
यह पुस्तक पठनीय व पूस्तकालयों में संग्रहणीय है | सभी कविताएँ ओजपूर्ण अभिव्यक्ति को समर्पित हैं | कवयित्री गीता पंडित साधुवाद की पात्र हैं कि उन्होने एक स्तरीय काव्य-कृति पाठकों को परोसी है | विश्वास है कि गीता पंडित की आने वाली कृतियाँ और भी आकर्षक व भावपूर्ण होंगी |
---समीक्षक : रामजीलाल घोडेला (व्याख्याता ) ,
चन्द्र साहित्य प्रकाशन ,
लूनकरणसर -334603 ,
ज़िला बीकानेर (राजस्थान )
मौन पलों का स्पंदन : गीता पंडित
पुस्तक परिचय: नाम पुस्तक – मौन पलों का स्पंदन ,कवयित्री –गीता पंडित ,
प्रकाशक – काव्य प्रकाशन ,
मुद्रण – आर ॰ के ॰ ऑफसेट दिल्ली ,
मूल्य -150 रुपये ,
पृष्ठ 128,
प्रथम संस्करण 2011
सृजन की चाह व्यक्ति की आदिम चाह है | प्रकृति की भाँति व्यक्ति भी स्वयं को विविध माध्यमों एवं कला रूपों में रचना ,अभिव्यक्ति करता आया है | प्रत्येक देश और प्रत्येक भाषा में मानवीय सृजन , चिंतन , शिल्पगत कौशल और जीवन जगत के विविध रूपों की उत्कर्षपूर्ण रचनाओं का शानदार इतिहास आज भी सुरक्षित है | उन्हें देखकर तथा उनका अनुशीलन आने वाली पीढ़ियाँ सृजन के नए प्रतिमान रचती आई है |
कविता कर्म की भाववाचक संज्ञा है |अन्तर्मन में उठने वाले भावांदोलन प्रवाह है जो शब्दों की सिकता पर अनगिन शंख-सीपियों के आलेख छोड़ जाता है | कविता मात्र शब्द नहीं , हृदय –वृन्त पर खिला ऐसा शब्द-प्रसून है , जिसमें अन्तः स्वरों की गंध बसी होती है | यह गंध ही उसका स्वत्व है , उसकी नैसर्गिक पहचान है | काव्य- शास्त्रियों की भाषा में रमणीय अर्थ है जो शब्द के पोर पोर में ऐसा समाया हुआ है कि उसे पृथक नहीं किया जा सकता |
यह सही है कि कविता शक्ति है , किन्तु विध्वंसक शक्ति नहीं है | वह शिवत्व से संपृक्त सर्जनात्मक शक्ति है | इसलिए उसका उद्देश्य अमरणीय को भी रमणीय , असुंदर को भी सुंदर बनाकर प्रस्तुत करना है | ऐसा ही प्रयास गीता पंडित का है जिन्होने अपनी नवीन काव्य कृति-मौन पलों का स्पंदन – में बखूबी किया है | गीता पंडित एक युवी कवयित्री है जिसने अपने मन के भावों को प्रकट करने के लिए काव्य विद्या को चुना है | इनकी कविताएँ मर्मस्पर्शी व उत्कृष्ट काव्य की प्रस्तुति है | गीता पंडित के काव्य में ऐसा स्पंदन है जो इसे पढ़ने को करता है | ‘मौन पलों का स्पंदन ‘कृति में 70 कविताएँ हैं जो बहुत ही सुंदर व आकर्षक हैं |
‘लेखनी से झर रहे जो ‘ कविता में स्वर की देवी माँ सरस्वती की वंदना कर साहित्य धर्म का पालन कर आशीष प्राप्त किया है | एक बानगी देखिए—
भाव से भर आओ माते ! / गीत बन जाऊँ तुम्हारा
रागिनी बन कर तुम्हीं को / गुनगुनाती साथ आऊँ
माँ ! तुम्हारी आरती का दीप बन मैं जगमगाऊँ |
कवयित्री गीता पंडित ने कविताओं के माध्यम से अपने मन के भावों को सहज रूप में उकेरा है |’ आज तुम्हारे बिना किससे ‘ कविता में ये पंक्तियाँ निश्चित रूप से गीता के संदेश को सार्थक करती हैं |
जन्म- मरण का खेल पुराना / माटी का तन मान रही हूँ
गीता का संदेश मन से / मन के अंदर जान रही हूँ |
कविता उपदेश नहीं, अपितु इस प्रयोजन की सिद्धि के लिए यदि उसे समाज को दिशा बोधक उपदेश देने की भूमिका निभानी पड़े तो उस उपदेश का स्वरूप भी कांता सम्मित होना आवश्यक माना गया है | अपने भावों का कवयित्री ने इन पंक्तियों में उल्लेख किया है –
आते – जाते कितने / भाव नदी संग बह जाते
न जाने क्यूँ भाव तुम्हारे /अन्तर्मन ढल जाते हैं
अनेक कविताएँ मन के भावों को प्रेम रस में अभिव्यक्त करती हैं |कवयित्री ने जिस स्नेहमयी रंग में डूब कर इस कृति की रचना की है , सराहनीय है | ऐसी कृतियों के रचनाकार वास्तव में बहुत ही संवेदनशील , करुणामयी और ममतामयी पक्ष को प्रकट करते हैं |इसी तरह कविता के साथ साथ कवि के सामाजिक सरोकार जुडते हैं | वह समाज की देह में व्याप्त अशिव रूपी विष का शमन करने के लिए शब्दों का कलेवर धारण करती है | प्राचीन मनीषियों ने काव्य के इसी प्रयोजन को शिवेतर की क्षति कहा है | एक अन्य कविता की यह बानगी देखिए –
प्रीत-साध्वी सीता बन कर /वन-वन प्रियतम ढूँढ रही
प्रीत मांडवी की लाचारी / संग प्रियतम पर मूक रही
इसी प्रकार ‘ मन के पाखी ‘ कविता में कवयित्री ने बहुत ही सुंदर ढंग से अपने मन भावों को उकेरा है –
कलरव मन /डाली पर सुनती /प्रीत बावरी /पल पल बुनती
ओढ़ दुशाला / प्रीत का मीते /प्रेम सदन / बन कर सो जाते
मौन पलों का स्पंदन में अन्य अनेक कविताएँ स्नेहमयी प्रसंगों का सांगोपांग वर्णन करती हैं |यह स्नेह ईश्वर के प्रति ,मातृशक्ति के प्रति , अपने प्रियतम , बालक , बड़ों व अपने आसपास की वस्तुओं के प्रति परिलक्षित होता है | क्यूँ सूनी अन्तर में धरा , मत कहो अनकहा , पीर मुझको गा रही , फिर से छेड़ी तान पल ने , प्रेम , मौन मन वट-वृक्ष पर , नीर गान छलकाए , प्रीत का जो पृष्ठ पहला आदि कविताएँ भी भावपूर्ण व शब्द- शिल्प की दृष्टि से स्तरीय बन पड़ी हैं |
इस कृति की रचनाएँ सरल व सहज भाषा में लिखी गईं हैं | कवयित्री ने एक ऐसी कृति का सृजन किया है जो आने वाले वर्षों में लोकप्रिय होगी | काव्य प्रकाशन हापुड़ से छपी इस कृति की साज-सज्जा व मुखावरण बहुत ही आकर्षक व रोचक है | ‘ मौन पलों का स्पंदन ‘ का मुखावरण पृष्ठ सहज ही मौन पलों को प्रत्यक्ष रूप से प्रकट करता है | आजकल गद्य विद्या में कविताएँ सृजन की प्रवृति शीर्ष पर है | बात यह नहीं है कि काव्य में कौन सी विद्या अपनाई गई है , महत्वपूर्ण यह है कि अपने भावों की अभिव्यक्ति सहज रूप से पाठकों का केंद्र बने |
यह पुस्तक पठनीय व पूस्तकालयों में संग्रहणीय है | सभी कविताएँ ओजपूर्ण अभिव्यक्ति को समर्पित हैं | कवयित्री गीता पंडित साधुवाद की पात्र हैं कि उन्होने एक स्तरीय काव्य-कृति पाठकों को परोसी है | विश्वास है कि गीता पंडित की आने वाली कृतियाँ और भी आकर्षक व भावपूर्ण होंगी |
---समीक्षक : रामजीलाल घोडेला (व्याख्याता ) ,
चन्द्र साहित्य प्रकाशन ,
लूनकरणसर -334603 ,
ज़िला बीकानेर (राजस्थान )
1 comment:
bahut sundar samikhsa.. pustak ke prati lalsa badhi hai.. prapt karne ka upay batayen
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