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मेरे मन के
प्रांगण में भी
भाव सुमन भर लाओ,
मैं नित-नित
गाती हूँ तुमको
आज मुझे माँ ! गाओ |
शंख नाद के
पावन भावों
सी भर आये मेरी लेखनी,
सत्यं शिवं
सुंदरं बनकर
जनमन कथा सुनाये लेखनी,
वीणा पाणी
मात शारदे !
ऐसा वर ले आओ |
मैं नित-नित
गाती हूँ तुमको
आज मुझे माँ ! गाओ |
लिखी सूर की
तुमने पाती
बनीं कबीर की भाषा सादी,
बाँची तुलसी
की रामायण
कालीदास को आयीं गाती ,
रुद्ध कण्ठ है
अधर हैं कंपित
सुर सरिता लहराओ |
मैं नित-नित
गाती हूँ तुमको
आज मुझे माँ ! गाओ |
आयी युगों से
कब गाने मैं पायी.
तुम ही मात्रा
अक्षर बिंदु कब
वर्ण समझ मैं पायी,
बरसें नयना हर पल मेरे
गीतों में ढल आओ ।
मैं नित-नित
गाती हूँ तुमको
आज मुझे माँ ! गाओ ||
गीता पंडित
21 comments:
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Prabhat Pandey
सत्यम् शिवम् सुंदरम् ..... शुभकामना आप सब को.
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Ravindra K Das
गहरे भक्ति-बोध की कविताएँ हैं......
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Kavi Arjun Alhad
जय माता दी
गीता दीदी
अति उत्तम..!
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Ashok Aggarwal
मेरे मन के अंध तमस में,
ज्योतिर्मयी उतारो॥.....Didi apko bhi Navratr ki hardik shubhkaamnaye.
"हम और हमारी लेखनी" की तरफ से सभी मित्रों को और सभी मित्रों की लेखनी को मंगलकामनाएं...
बहुत ही खुबसूरत....
सुन्दर कामना ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।माता रानी आपकी सभी मनोकामनाये पूर्ण करें और अपनी भक्ति और शक्ति से आपके ह्रदय मे अपनी ज्योति जगायें…………सबके लिये नवरात्रि शुभ हो॥
बहुत खूब ..बेहतरीन
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Praveen Pandit
कितनी भावपूर्ण है यह विनती कि माँ आज स्वयं मुझे गाये | आदिश्वरी माँ लेखनी को सामर्थ्य और स्वयं को संबल देती रहे |
वाह दी! बहुत सुन्दर प्रार्थना है...
नवरात्र की सादर बधाईयाँ...
waah aaj bhakt bhagwaan ki pareeksha par utar aaya hai...waise jab jab aisa hua bhakt kabhi nirash nahi hua.
aapki dua b jaroor puri hogi.
sunder nirmal prastuti.
भावमय करते शब्दों का संगम है मां का यह वंदन ..बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
बेहतरीन।
सादर
सुन्दर प्रस्तुति ...नवरात्रि की शुभकामनाएँ
सुन्दर प्रस्तुति ...नवरात्रि की शुभकामनाएँ
आभारी हूँ आप सभी की मित्र ..
मंगलकामनाएँ ..
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Jeewan Soni
Gita ji, jabtak aap jaise log salaamat hain Hindi bhasha ka gaurav hamesha salaamat rahega. Jai Mata ki
भाषा की गरिमा को समर्पित
प्रभावशाली कृति ... !
गीता जी इसमैं जो भाव आपने डाले हैं
सब आज मेरी आँखो से निकले है !!!!
बहोत बहोत धन्यवाद आपको और बधाइ!!!!!
♥
आदरणीया गीता पंडित जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
आनंद परमानंद की अनुभूति हुई आपके यहां आ'कर…
वाह वाऽऽह! कितना अलग ,कितना गरिमामय लिखा है आपने-
मेरे मन के प्रांगण में भी भाव सुमन भर लाओ,
मैं नित-नित गाती हूँ तुमको आज मुझे माँ ! गाओ |
शंख नाद के पावन भावों सी भर आये मेरी लेखनी,
सत्यं शिवं सुंदरं बन कर जन मन कथा सुनाये लेखनी,
वीणा पाणी मात शारदे !
ऐसा वर ले आओ |
लिखी सूर की तुमने पाती बनीं कबीर की भाषा सादी,
बाँची तुलसी की रामायण कालीदास को आयीं गाती ,
रुद्ध कण्ठ है अधर हैं कंपित
सुर सरिता लहराओ |
तुमको गाती आयी युगों से कब गाने मैं पायी.
तुम ही मात्रा अक्षर बिंदु कब वर्ण समझ मैं पायी,
बरसें नयना हर पल मेरे
गीतों में ढल आओ ।
माता सरस्वती के साथ यह विश्वास और अधिकार का रिश्ता अभिभूत कर रहा है मुझे !
बहुत सुंदर रचना के लिए आपको और आपकी पावन लेखनी को प्रणाम!
आभार, बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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