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जब दिलों
में जगह नहीं होती
दोस्ती
की वजह नहीं होती
कमी होगी
ज़रूर हम में ही
दुश्मनी
बे- वजह नहीं होती
पूजते हम
न अगर पत्थर को
ज़िंदगी
यूँ ज़िबह नहीं होती
प्यार तो
नाम है इबादत का
कभी
इसमें जिरह नहीं होती
ऐसी भी
बदनसीब रातें हैं
जिनकी
कोई सुबह नहीं होती
कह सकोगे
शलभ ग़ज़ल कैसे
जब गज़ल
की तरह नहीं होती ||
मदन शलभ
19 जुलाई 2019
(ग़ज़ल संग्रह में प्रकाशित)
प्रेषिका
गीता पंडित
सम्पादक शलभ प्रकाशन
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