Thursday, March 1, 2012

दो कवितायें ...... गीता पंडित.. (प्रभात केसरी ) में प्रकाशित





मन मल्हार सुनायें ___




कौन सुनेगा हाल | 

वही हैं कौरव 
वही पांडव 
इच्छाओं के दास,
फिर से किसी 
महाभारत की
लेकर बैठे आस,

जगह जगह पर 
नेताओं की
लगी हुई चौपाल,
कौन सुनेगा हाल |

वही सभा है 
दुर्योधन की
खङी द्रोपदी रोय,
गूँगे बहरे 
बने सभासद
अंतर अश्रू बोय,
रचना करने 
वाली के संग 
कैसी पल की चाल
कौन सुनेगा हाल |



फिर झूले हों 
डाली - डाली
मन मल्हार सुनाये,
गीत मिलन के 
गाकर मनवा
अंतर से मुस्काये,
बोलें केवल 
प्रेम की बोली
आये ऐसी ताल 
कौन सुनेगा हाल ||
......







नीरव क्षण का गीत __




संचय मेरे तुम्हें समर्पित
पीड़ा ना दे पाउंगी ।

मेरे अश्रु हैं मेरी थाती
जीवन भर की रही कमाई,
नयनों की है तृषा बुझानी
अंतर्मन पलकों पर लायी,
अंतर का ये नीर मेरे मीते !
तुमको ना दे पाउंगी |

विष या अमृत अंतर क्या अब
श्वासें जैसे मोल चुकायें.
पंछी बनकर प्रीत उङ गयी
सुर धङकन में कौन सजायें,
नीरव क्षण का गीत मेरे मीते !
तुमको ना दे पाउंगी ||





गीता पंडित 





2 comments:

sushila said...

आपको पढना सदा ही एक सुखद अनुभव रहता है। आपके भाव मन में स्थान बना लेते हैं और मन उन्हें गुनता रहता है।
बहुत सुंदर गीता जी।

राजेंद्र अवस्थी. said...

आदरणिया, मै आपकी रचनाएं पढ़ कर भावविभोर हो गया हूँ, प्रशंसा हेतु मैं अपने को शब्दहीन पा रहा हूँ, अद्भुत,अतुलनिय।