Thursday, July 4, 2019

प्रवीण पंडित की एक ग़ज़ल


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चलूँ कुछ रोशनी बुनकर , नई राहें बिछा लूँ तो
बहुत मायूस लब हैं , गीत वोही, गुनगुनालूँ तो |

मेरे कुछ ख़्वाब शायद मोड़ तक पहुँचे नहीं होंगे
उस रूठे यार को आवाज़ दे ,फिर से बुला लूँ तो |

न जाने बात निकली ,लोग क्या मानी लगा लेंगे
उसका नाम फिर ओठों पे आने से दबा लूँ तो |

कहीं पर धूप, बारिश या कभी तूफान भी आए
अपना हौसला, एक बार फिर से आज़मा लूँ तो |

सुनहरे कुछ सवेरे , साँझ गंदुम, स्याह सी रातें
सभी ये रंग दिल के केनवस पर ही लगा लूँ तो |

बहुत अरसा हुआ ख़ामोशियों में तैरते, घिरते
बुरा गर न लगे तो ,आज फिर से मुस्करा लूँ तो |


-प्रवीण पंडित की खूबसूरत गज़ल 
'गर्भनाल पत्रिका - जुलाई 2012 से .... आप भी पढ़िए 

सम्पादक 
गीता पंडित 

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