....
........
१)
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है_____
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है
पर उस आदमी को ज़रूर देखा है
जो मेरे शहर में इन दिनों आया हुआ है
एक अजीब वेश में
मैंने दूर से ही
उसकी चाल को देखा है,
उसकी ढाल को देखा है.
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है,
पर उसकी भाषा में बोलते उस आदमी को ज़रूर देखा है,
उसकी आवाज़ मैंने
सुनी है
रेडियो पर
जिस तरह एक बार हिटलर की आवज़ सुनी थी मैंने
उसके बाद ही
मैंने उस खून को ज़रुर देखा है
जो बहते हुए आया था मेरे घर तक
मैंने वो चीत्कारें सुनी थी,
वो चीख पुकार
वो लपटें वो धुआं भी देखा था.
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है.
पर उस आदमी को देखा है
जिसकी मूछें
जिसका हैट
किसी को दिखाई नहीं देता
आजकल
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है
पर उस आदमी को जरूर देखा है
जिसकी आँखों में
नफरत है उसी तरह
उसी तरह चालाकी
उसी तरह जिस तरह लोमड़ी की आँखों में होती है.
ये क्या हो गया
ये कैसा वक़्त आ गया है
मैं हिटलर को तो नहीं देखा
पर उसके समर्थकों को देखा है अपने मुल्क में
पर उनलोगो ने शायद नहीं देखा
इतिहास को बनते बिगड़ते
कितनी देर लगती है
उनलोगों ने शायद हमारे सीने के भीतर जलती
उस आग को नहीं देखा है,
जिसे देखकर हिटलर भी अकेले में
कभी कभी
चिल्लाया
करता था
और वो भीतर ही भीतर
डर भी जाया करता था.
.........
इस बार हत्या करने के बाद उसने कहा-
........
१)
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है_____
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है
पर उस आदमी को ज़रूर देखा है
जो मेरे शहर में इन दिनों आया हुआ है
एक अजीब वेश में
मैंने दूर से ही
उसकी चाल को देखा है,
उसकी ढाल को देखा है.
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है,
पर उसकी भाषा में बोलते उस आदमी को ज़रूर देखा है,
उसकी आवाज़ मैंने
सुनी है
रेडियो पर
जिस तरह एक बार हिटलर की आवज़ सुनी थी मैंने
उसके बाद ही
मैंने उस खून को ज़रुर देखा है
जो बहते हुए आया था मेरे घर तक
मैंने वो चीत्कारें सुनी थी,
वो चीख पुकार
वो लपटें वो धुआं भी देखा था.
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है.
पर उस आदमी को देखा है
जिसकी मूछें
जिसका हैट
किसी को दिखाई नहीं देता
आजकल
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है
पर उस आदमी को जरूर देखा है
जिसकी आँखों में
नफरत है उसी तरह
उसी तरह चालाकी
उसी तरह जिस तरह लोमड़ी की आँखों में होती है.
ये क्या हो गया
ये कैसा वक़्त आ गया है
मैं हिटलर को तो नहीं देखा
पर उसके समर्थकों को देखा है अपने मुल्क में
पर उनलोगो ने शायद नहीं देखा
इतिहास को बनते बिगड़ते
कितनी देर लगती है
उनलोगों ने शायद हमारे सीने के भीतर जलती
उस आग को नहीं देखा है,
जिसे देखकर हिटलर भी अकेले में
कभी कभी
चिल्लाया
करता था
और वो भीतर ही भीतर
डर भी जाया करता था.
.........
२)
इस बार हत्या करने के बाद उसने कहा-
ये हत्या नहीं है
ये तो एक जरूरी करवाई है
सत्य की रक्षा के लिए.
जो सविधान के के दायरे में है
बलात्कार करने के बाद फिर उसने कहा-
ये तो बलात्कार भी नहीं है
एक लोकतान्त्रिक पहल है
स्त्री की रक्षा के किये
और ये भी संविधान के दायरे में ही है.
६८ साल से छीनी जा रही थी हमसे रोटी
बनाया जा रहा था हमे बेरोजगार
ख़त्म किये जा रहे थे हमारे सपने
लगाई जा रही थी आग घरों में
पेट में भोंका जा रहा था तलवार
इस देश में सबकुछ हो रहा था
संविधान के दायरे में
इसलिए सड़कों पर घूम रहे थे
दलाल और तस्कर
सम्मानित किये जा रहे थे
हर समारोहों में
मस्जिद भी ढाही गयी थी
मारे गए थे कुछ लोग एक बरगद के गिरने पर
लूट लिया गया था इस देश को
संविधान के दायरे में
जब हम उठाते थे आवाज़
जब लिखते थे विरोध में कुछ
जब गाते थे कोई गीत
जब चिपकाते थे दीवारों पर इबारत
तो कहा जाता था
ये तो संविधान विरोधी करवाई है.
ये एक ऐसा युग था
बदली जा रही थी हेर चीज़ की परिभाषा
शब्द खोने लगे थे अपने अर्थ
दृश्य भी बहुत खतरनाक हो गये थे.
डरावनी हो गयी थी चैनलों पर बहसे.
अख़बार पढ़कर आने लगती थी उबकाई.
चारो तरफ बज रहे थे शंख
और ढोल
पीटे जा रहे थे नगाड़े
फूल मालाओं से लादे जा रहे थे लोग
एक अजीब नशा था चारो तरफ
एक अजीब बुखार था.हवा में फैला
आसमान में चील की तरह मडरारहे रहे थे हेलीकाप्टर.
कोने में
थर थर काप रहा रहा एक बूढा
जिसकी आँखे धंस गयी थी
गाल पिचक गये थे
हड्डियाँ भी दिखने लगी थी
कुछ लोगों ने ले रखा था
उसे अपने कब्जे में
सबसे बेबस वही था
चिल्ला रहा था
मुझे बचाओ.
क्या आपको पता था
उसी आदमी का नाम था
भारतीय लोकत्रंत .!
और वही इन दिनों सबसे अधिक खतरे में था.
………
३)
मिस एफ.डी.आई. मेरी जान...
शेरशाह सूरी के पुराने जर्जर किले से बोल रहा हूँ
मिस एफ.डी.आइ. मेरी जान...
वैसे ही तुम्हें पुकार रहा हूँ
जैसे कोई डूबता हुआ आदमी पुकारता है किसी को
मेरी जान बचा लो, मेरी जान एफ.डी.आई.
देखो, मैं किस तरह पैंसठ सालों से डूब रहा हूँ
एक परचम लिए हवा में
इस जहाज में हो गए हैं कितने छेद
तुम्हें पता है
अब कोई नहीं बचा सकता इसे
सिर्फ तुम्हारे सिवाय
आज की रात आजा ओ मेरी बाँहों में
कर लो अपनी साँसें गर्म
बिस्तर उतप्त
मेरी जान एफ.डी.आई.
कितने सालों से कर रहा हूँ बेसब्री से तुम्हारा इंतजार
तुम आओगी तो बदल दोगी
मेरे घर का नक्शा
तुम आओगी तो खिल जाएँगे फूल मेरे गुलशन में
तुम आओगी तो चहकने लगेगी चिड़िया
एफ.डी.आई. मेरी जान...
तुम्हारे आने से
गंगा नहीं रहेगी मैली
वह साफ हो जाएगी
हो जाएगी उज्ज्वल
रुक जाएँगी आत्महत्याएँ,
मजबूत हो जाएँगी आधारभूत सरचनाएँ
आ जाओ, अभी आ जाओ एकदम
उड़ती हुई हवा में
खुशबू की तरह
चली आ जाओ मेरी जान...
कितने रातों से बदल रहा हूँ करवटें
ठीक कर रहा हूँ चादर की सलवटें
तुम्हारे लिए
कितने कागजों पर लिखा है तुम्हारा नाम
कितने खत लिखे हैं मैंने तुम्हे अब तक
कितने किए ई मेल
एस.एम.एस.
फेसबुक पर भी छोड़ा है तुम्हारे लिए संदेश
अब और न तड़पाओ मेरी जान
मंदिरवाले भी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष तो बुला रहे हैं तुम्हें
निमंत्रण कार्ड भेज कर
कुछ समाजवादी भी साधे हुए हैं रहस्यमय चुप्पी
सामाजिक न्याय के झंडाबरदार की खामोशी का अर्थ नहीं छिपा किसी से
आ जाओ, मेरी जान
तुम आओगी तो हमारे चेहरे पर भी
आ जाएगी मुस्कान
कुछ उम्मीद जागेगी
इस जीवन में
एफ.डी.आई मेरी जान...
शेरशाह सूरी के पुराने किले से
पुकार रहा हूँ तुम्हें
कभी इसी किले के बुर्ज से
पुकारा था
संजय ने
अंधायुग के नाटक में
लौट आया है वह युग फिर से
मेरी जान...
इसलिए मैं पुकार रहा हूँ तुम्हें
क्योंकि अब मेरे जीवन का
परम सत्य तुम्हीं हो
अब तक मैंने भूल की
नहीं पहचानी
मैंने तुम्हारी अहमियत
कौन हो सकता है
तुमसे अधिक रूपवान
इस दुनिया में
आज की तारीख में
कौन हो सकता
तुमसे अधिक जवान
चली आओ
एफ.डी.आई. मेरी जान...
तुम आओगी
तभी आएगी
दूसरी आजादी
पहले जो आई थी
वह तो रही व्यर्थ,
अब नही रहा उसका अर्थ
नहीं थी वह तुमसे अधिक खूबसूरत
इसलिए मैं शेरशाह सूरी के पुराने किले से
पुकार रहा हूँ
तुम्हें
चली आओ मेरी जान...
जिस तरह पुकारा था
अल्काजी ने कभी
धृतराष्ट्र...!
चली आओ,
एफ.डी.आई. मेरी जान...
मेरी साँसें उखड़ रही हैं
तुम नहीं आओगी
तो मैं अब जिंदा नहीं रह पाऊँगा
घबराओ नहीं
यहाँ होती रहेगी हड़ताल
पर तुम चली आओ
मेरी जान...
उठानेवाले तो हर युग में
उठाते रहते हैं सवाल
पर तुम चली आओ
इसी इसी वक्त,
यहाँ मचा हुआ है कितना हाहाकार
मैं कर रहा हूँ
तुम्हारा
एक पागल प्रेमी की तरह
इंतजार...
मिस एफ.डी.आई. मेरी जान
...…....
प्रेषिता
गीता पंडित
३)
मिस एफ.डी.आई. मेरी जान...
शेरशाह सूरी के पुराने जर्जर किले से बोल रहा हूँ
मिस एफ.डी.आइ. मेरी जान...
वैसे ही तुम्हें पुकार रहा हूँ
जैसे कोई डूबता हुआ आदमी पुकारता है किसी को
मेरी जान बचा लो, मेरी जान एफ.डी.आई.
देखो, मैं किस तरह पैंसठ सालों से डूब रहा हूँ
एक परचम लिए हवा में
इस जहाज में हो गए हैं कितने छेद
तुम्हें पता है
अब कोई नहीं बचा सकता इसे
सिर्फ तुम्हारे सिवाय
आज की रात आजा ओ मेरी बाँहों में
कर लो अपनी साँसें गर्म
बिस्तर उतप्त
मेरी जान एफ.डी.आई.
कितने सालों से कर रहा हूँ बेसब्री से तुम्हारा इंतजार
तुम आओगी तो बदल दोगी
मेरे घर का नक्शा
तुम आओगी तो खिल जाएँगे फूल मेरे गुलशन में
तुम आओगी तो चहकने लगेगी चिड़िया
एफ.डी.आई. मेरी जान...
तुम्हारे आने से
गंगा नहीं रहेगी मैली
वह साफ हो जाएगी
हो जाएगी उज्ज्वल
रुक जाएँगी आत्महत्याएँ,
मजबूत हो जाएँगी आधारभूत सरचनाएँ
आ जाओ, अभी आ जाओ एकदम
उड़ती हुई हवा में
खुशबू की तरह
चली आ जाओ मेरी जान...
कितने रातों से बदल रहा हूँ करवटें
ठीक कर रहा हूँ चादर की सलवटें
तुम्हारे लिए
कितने कागजों पर लिखा है तुम्हारा नाम
कितने खत लिखे हैं मैंने तुम्हे अब तक
कितने किए ई मेल
एस.एम.एस.
फेसबुक पर भी छोड़ा है तुम्हारे लिए संदेश
अब और न तड़पाओ मेरी जान
मंदिरवाले भी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष तो बुला रहे हैं तुम्हें
निमंत्रण कार्ड भेज कर
कुछ समाजवादी भी साधे हुए हैं रहस्यमय चुप्पी
सामाजिक न्याय के झंडाबरदार की खामोशी का अर्थ नहीं छिपा किसी से
आ जाओ, मेरी जान
तुम आओगी तो हमारे चेहरे पर भी
आ जाएगी मुस्कान
कुछ उम्मीद जागेगी
इस जीवन में
एफ.डी.आई मेरी जान...
शेरशाह सूरी के पुराने किले से
पुकार रहा हूँ तुम्हें
कभी इसी किले के बुर्ज से
पुकारा था
संजय ने
अंधायुग के नाटक में
लौट आया है वह युग फिर से
मेरी जान...
इसलिए मैं पुकार रहा हूँ तुम्हें
क्योंकि अब मेरे जीवन का
परम सत्य तुम्हीं हो
अब तक मैंने भूल की
नहीं पहचानी
मैंने तुम्हारी अहमियत
कौन हो सकता है
तुमसे अधिक रूपवान
इस दुनिया में
आज की तारीख में
कौन हो सकता
तुमसे अधिक जवान
चली आओ
एफ.डी.आई. मेरी जान...
तुम आओगी
तभी आएगी
दूसरी आजादी
पहले जो आई थी
वह तो रही व्यर्थ,
अब नही रहा उसका अर्थ
नहीं थी वह तुमसे अधिक खूबसूरत
इसलिए मैं शेरशाह सूरी के पुराने किले से
पुकार रहा हूँ
तुम्हें
चली आओ मेरी जान...
जिस तरह पुकारा था
अल्काजी ने कभी
धृतराष्ट्र...!
चली आओ,
एफ.डी.आई. मेरी जान...
मेरी साँसें उखड़ रही हैं
तुम नहीं आओगी
तो मैं अब जिंदा नहीं रह पाऊँगा
घबराओ नहीं
यहाँ होती रहेगी हड़ताल
पर तुम चली आओ
मेरी जान...
उठानेवाले तो हर युग में
उठाते रहते हैं सवाल
पर तुम चली आओ
इसी इसी वक्त,
यहाँ मचा हुआ है कितना हाहाकार
मैं कर रहा हूँ
तुम्हारा
एक पागल प्रेमी की तरह
इंतजार...
मिस एफ.डी.आई. मेरी जान
...…....
प्रेषिता
गीता पंडित