Thursday, March 8, 2018

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ...जुनून ..गीता पंडित

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जुनून _____
 
 
कोरा काग़ज़ देखते ही

बेचैन हो जाती हैं उंगलियाँ

और लिखने लगती है अमिट इबारत

खुश होता है मन और चहचहाने लगती है चिड़िया

 

अगले ही पल कोरा हो जाता है काग़ज़

फिर से लिखती हैं उंगलियाँ

और हँसने लगती है इबारत |

 

फिर से मिट जाती है इबारत

और हो जाता है काग़ज़ कोरा

 

नहीं टूटता मिटने का क्रम 

और नहीं समाप्त होता उँगलियों का जुनून
 

क्योंकि उंगलियाँ जान चुकी हैं

यदि रहना है शेष

तो लिखते जाना है बराबर
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-गीता पंडित
3/8/2018
 
(सभी महिलाओं को समर्पित)

 

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (09-03-2017) को "अगर न होंगी नारियाँ, नहीं चलेगा वंश" (चर्चा अंक-2904) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'