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मृत्यु आजकल मुझसे बतियाती है
हँसती है जोर से
अट्टहास करती है
मैं चौंकती नहीं पहले की तरह
उपहास भी नहीं करती
मुँह भी नहीं मोड़ती
उन्हें बीनती हूँ और
एक दृष्टि अनायास
डालकर अपने आप पर
उससे कहती हूँ
अभिनंदन तुम्हारा
गुनगुनाना
इसके स्वाभिमान को
जिसको बचाते-बचाते
माटी फिर माटी हो रही है
हँसती है जोर से
अट्टहास करती है
मैं चौंकती नहीं पहले की तरह
उपहास भी नहीं करती
मुँह भी नहीं मोड़ती
हाँ उदास आँखों से पलटकर देखती हूँ कहीं
जहां जीवन ने बिखर दी थीं
अपनी कुछ कतरन
जहां जीवन ने बिखर दी थीं
अपनी कुछ कतरन
उन्हें बीनती हूँ और
एक दृष्टि अनायास
डालकर अपने आप पर
उससे कहती हूँ
अभिनंदन तुम्हारा
लेकिन जब भी
अपने कांधे से मुझे लगाओ
धीमे से संभालना
इस जर्जर
अपने कांधे से मुझे लगाओ
धीमे से संभालना
इस जर्जर
प्रेम पगी कँपकपाती देह को
क्यूंकि सदियों से
अपना ही बोझ ढोते-ढोते
यह हो गयी है धनुषाकार
क्यूंकि सदियों से
अपना ही बोझ ढोते-ढोते
यह हो गयी है धनुषाकार
चाहकर भी अब इसे
सीधी करना मुमकिन नहीं
फिर भी खड़ी है सतर्क अडिग
अपने ही प्रेम की प्रियसी
सीधी करना मुमकिन नहीं
फिर भी खड़ी है सतर्क अडिग
अपने ही प्रेम की प्रियसी
प्रेम ने इसे पुचकारा है
बड़े प्रेम से
कम से कम
तुम तो स्वागत करना
बड़े प्रेम से
कम से कम
तुम तो स्वागत करना
गुनगुनाना
इसके स्वाभिमान को
जिसको बचाते-बचाते
माटी फिर माटी हो रही है
-गीता पंडित
21/9/15
21/9/15
2 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, १७ मार्च - भारत के दो नायाब नगीनों की जयंती का दिन“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-03-2018) को ) "भारतीय नव वर्ष नव सम्वत्सर 2075" (चर्चा अंक-2914) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
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