Monday, October 3, 2011


शक्ति-पूजा और भारतीय स्त्री: उदय प्रकाश/अनामिका

मित्रो, भारत में शक्ति-पूजा की परम्परा और भारतीय समाज में स्त्री की दशा के सन्दर्भ में 
उदय प्रकाश और अनामिकासे बातचीत पर आधारित यह लेख पिछले साल दुर्गापूजा
 के अवसर पर राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित हुआ था. आजकल नवरात्र चल रहा है इसलिए 
यह लेख प्रासंगिक है. पढ़ सकते हैं. शुक्रिया. - शशिकांत  

समाज की मुक्ति से जुड़ी है स्त्री की मुक्ति : उदय प्रकाश
उदय प्रकाश
मेरा मानना है कि यथार्थ को झुठलाने के
 लिए सबसे ज्यादा धर्म और आध्यात्म का
 इस्तेमाल किया जाता है, मामला चाहे 
स्त्री का हो या दलित का या हाशिए पर की अन्य अस्मिताओं का। हमारे यहां कहा 
जाता है कि काशी का राजा डोम था। उत्तर प्रदेश 
में ही विंध्यवासिनी देवी की पूजा की जाती है। 
   

दरअसल जब से स्त्री की सत्ता छीनी गई 
तब से उसकी पूजा की जाने लगी। दक्षिण 
और पूर्वोत्तर भारत में आज भी कई जगहों 
पर मातृसत्तात्मक समाज है। लेकिन 
पूरे उत्तर भारत का समाज मातृसत्तात्मक है। 

यहां आज भी कन्या भ्रूण हत्या, दहेज 
और खाप पंचायतों द्वारा प्रेम करने पर 
स्त्रियों की जान ले ली जाती है। दूसरी 
तरफ हम देखते हैं कि यही समाज दूर्गा की भी पूजा करता है।


यथार्थ यह है कि स्त्रियों की स्थिति यहां अच्छी नहीं है। मुझे लगता है कि स्त्री सशक्ती-
करण पर विचार करते हुए हमें पितृसत्तात्मक समाज की स्थापना पर गौर करना चाहिए। 
यूनानी सभ्यता में इडीपस की जीत पितृसत्तात्मक समाज की जीत मानी जाती है।


इस समय स्त्री पर ज्यादा जोर इसलिए दिया जा रहा है कि पुरुषसत्तात्मक समाज 
व्यवस्था के समने कई तरह की अस्मिताएं आ खड़ी हुई हैं। अस्मिताओं में बंटे समाज में 
जातियों, धर्मों आदि के टुकड़े करने पड़ेंगे। 

भारतीय समाज की संरचना यूरोप से भिन्न है, इसलिए यहां यूरोप की तरह सिर्फ स्त्री 
और पुरुष के बीच समाज को बांट कर नहीं देखा जा सकता। दलित कहां जाएंगे? आदिवासी 
कहां जाएंगे? हाशिए पर की कई और अस्मिताएं कहां जाएंगी? जेंडर भारत का अकेला 
मसला नहीं है। इसके साथ और भी कई गंभीर मुद्दे हैं।

यह सच है कि
 भारत की स्त्रियां आज घर से बाहर निकल रही हैं, लेकिन वह शिकार 
भी हो रही हैं। रॉबर्ट जेनसेन की बहुचर्चित किताब ‘‘गेटिंग ऑफ: पोर्नोग्राफी एंड दि एंड ऑफ 
मेस्कुलिनिटी’’ में उन्होंने माना है कि भूमंडलीकरण के बाद विज्ञापन, बाजार और नव 
साम्राज्यवादी आचरण के पीछे सबसे पहला मुखौटा स्त्री का है। 


रॉबर्ट जेनसेन बाजारवादी नारीवाद को ग्लोबल पोर्न इंडस्ट्री का ही विस्तार मानते हैं। 
स्त्री ,मुक्ति आंदोलन के इस रूप को बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों तक चलने वाले उस स्त्री 
स्वाधीनता संग्राम के साथ जोड़ पाने में कई बार मुझे भी मुश्किल होती है जिसमें स्त्री ने समाज 
के दलित और वंचित तबकों की मुक्ति का सपना देखा था।

इस संदर्भ में देखें तो हमारे सामने क्लारा जेटकिन, क्रुप्स काया, लेनिन की बीवी, एरन गुल, 
सीमोन द बोउवार, केट मिलेट और भारत में कस्तूरबा से लेकर बहुत सारी महिलाएं थीं, और 
आज भी मेधा पाटकर, वंदना शिवा, अरुंधति रॉय, सुनीता नारायण, आंग सान सूकी, इरोम 
शर्मिला आदि ऐसी महिलाएं हैं जो आज की सत्ता के विरुद्ध समूचे मानवीय समाज की मुक्ति के 
लिए संघर्ष कर रही हैं। इन्होंने कभी जेंडर का नारा नहीं दिया। इनका कोई गॉड फादर नहीं है।

दरअसल भारत में स्त्री मुक्ति का सवाल हाशिए पर के कई अन्य समूहों की मुक्ति से जुड़ा हुआ 
है। स्त्री को मुक्त करते हुए हमें पूरे समाज को मुक्त करना होगा। यह सच है कि यह शताब्दियों से 
सबसे उत्पीड़ित अस्मिता रही है और जब तक यह ऐसी अन्य अस्मिताओं को साथ नहीं लेती 
तब तक वह बाजार और अन्य पितृसत्तात्मक सत्ता का लाभ लेकर भले लाभ उठाए, यह एक खास
वर्ग का ही सत्तारोहण होगा, स्त्री की मुक्ति का नहीं। मुझे लगता है इस बात को जनता समझ 
चुकी है।

यह मत भूलें कि विजय लक्ष्मी पंडित से लेकर इंदिरा गांधी, मार्गेट थैचर और सोनिया गांधी 
तक, जयललिता से लेकर मायावती तक और भंडारनायके से लेकर शेख हसीना वाजिद तक 
सत्ता के शिखर तक पहुंचने वाली महिलाएं स्त्री नहीं बलिक पुरुष सत्ता की ही प्रतीक रही हैं, और 
यही बात संसकृति ओर साहित्य में भी लागू होती है। ये गॉड फादर्स की सत्ताएँ थीं और हैं, मां 
की सत्ता की प्रतिष्ठा कहीं नहीं हुई। 


फासीवाद के बाद सबसे ज्यादा दमन फॉकलैंड वार में मार्गेट थैचर ने किया। इंदिरा गांधी ने  
भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार इमरजेंसी लगू की और लोगों की स्वतंत्रता की 
अभिव्यक्ति छीनी |बेगम खलिदा जिया बांग्लादेश में फौजी शासन लागू किया। जेंडर की निगाह 
से सत्ता को देखना मेरे लिए कभी सुकूनदेह नहीं रहा, क्योंकि मेरे लिए मान्यताओं का मूल्यांकन 
मायने रखता है।


स्त्री मुक्ति की राह में देह सबसे बड़ी बाधा : अनामिका
अनामिका
भारतीय परंपरा में शिव का संबंध शक्ति से है। शक्ति 
का सीधा संबंध स्त्री से है, स्त्री का प्रकृति से और प्रकृति 
का संबंध शक्ति से। शक्ति का ताल्लुक दुर्गा से है और दुर्गा 
को आद्य शक्ति कहा गया है। 
शक्ति के बिना मनुष्य शव के समान है। शक्ति का संचार 
होते ही वह सजीव, सचेतन और सक्रिय हो जाता है।  
शक्ति के बिना शिव भी शव के समान माने जाते हैं। 

वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो किसी भी पदार्थ में  
शिवत्व की शक्ति मंगल भाव से आती है। जब हम किसी देवता के 
के आगे सर झुकाते हैं तो तो हम उसकी शक्ति के आगे सिर झुकाते 
हैं और हमें लगता है कि वहां से एक तरह की एनर्जी हमारे भीतर
आ रही है |

देवी की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि उन्हें शक्ति स्वरूपा माना जाता है। उनके अंदर 
ममता, क्षमा, न्याय की शक्ति होती है। ममता और क्षमा से जब बात नहीं बनती तब न्याय की 
बात की जाती है | सांस्कृतिक रूप से इसे समझा जा सकता है।

आज की स्त्री जितनी थकी और हारी हुई है और सशक्तीकरण के लिए संघर्ष कर रही है उसे 
आधुनिकता के संदर्भ में समझने की जरूरत है। दरअसल स्त्री सशक्तीकरण की प्रक्रिया एक 
एतिहासिक प्रक्रिया है।  मध्यकालीन भारतीय समाज व्यवस्था में स्त्रियों की दशा अनुकूल 
नहीं थी।



उन्नीसवीं सदी में भारत में जब नवजागरण की शुरुआत हुई और स्वाधीनता आंदोलन में  
भारतमाता की जो छवि गढ़ी गई उसमें शक्ति का वही स्वरूप देखी गई। उस दौरान राजाराम 
मोहन राय एवं अन्य नवजागरणवादियों ने सती प्रथा, बाल विवाह का विरोध किया और विधवा 
विवाह की हिमाकत की| लेकिन मुझे लगता है कि उस वक्त स्त्रियों के राजनीतिक चेतना की बात 
नहीं उठाई गई।

महात्मा गांधी जब आए तो उन्होंने कहा कि अगर मानसिक और नैतिक बल की बात की 
जाये तो स्त्रियां ज्यादा नैतिक और सशक्त हैं। मुझे लगता है कि महात्मा गांधी ने पहली बार 
इस बात को समझा कि भारतीय स्त्रियां जब पढ़-लिख कर अपनी राजनीतिक चेतना के साथ 
सड़क पर आयेंगीं तो वे दहेज एवं अन्य सामाजिक कुप्रथाओं के खिलाफ ताकतवर रूप से खड़ी 
हिंगी और तभी भारतीय स्त्री समाज में सच्चे नवजागरण की शुरुआत होगी। उसके बाद हमने 
देखा कि भातीय स्त्रियाँ पढ़ लिखकर चेतना संपन्न होने लगी और बहुत सारी स्त्रियों ने आजादी 
की लडाई में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।

आजादी के बाद भारतीय स्त्रियों पर एक बड़ी जिम्मेदारी आई। पहले की स्त्री तन और मन से
अपने परिवार की सेवा करती थी लेकिन आजादी के बाद वह तन, मन और धन से अपने परिवार
की सेवा करने लगी, जिसके दायरे में रक्त और यौन संबंध के अलावा घर से बाहर, समाज, 
राजनाति  और कार्यस्थलों रपर बनाए गए उसके कई संबंध भी शामिल हुए। यानि कहा जा 
सकता है कि आधुनिक स्त्री ने अपने दिल का दायरा बढ़ाया |

जहां तक स्त्री शक्ति का सवाल है तो हर पुरुष की जिंदगी का सबसे यादगार संबंध किसी न
किसी स्त्री से जुड़ा होता है, चाहे वह मां के साथ जुड़ा हो या बहन के साथ अथवा प्रेमिका, पत्नी 
और बेटी के साथ। 
जब कभी कोई पुरुष बाहर की दुनिया से थक-हार कर घर आता है तो उसे सबसे ज्यादा नैतिक
और भावनात्मक सुरक्षा और समर्थन उसे स्त्री की तरफ से ही मिलती है। 

लेकिन आज भी स्त्री के सामने पुरुष का चेहरा उसे कमतर ही आंकते हुए, उसे आंखें दिखाते 
हुए और मारते-पीटते हुए ही आता है।  पुरुषों ने अपना चित्त - विस्तार नहीं किया।   पुरानी  
मानसिकता के पुरुषों में आज भी पूर्वग्रह बचे हुए हैं। उनको मांज-मांज कर ठीक करना है, जिस 
ह गंदे बर्तन को मांज मांज कर चमकाया जाता है उस तरह। 


स्त्री आंदोलन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि स्त्रियां मनोवैज्ञानिक तरीके से आंदोलन 
करती हैं स्त्री के हक की लड़ाई लड़ रही स्त्रियों ने कभी शस्त्र नहीं उठाया है। स्त्री सशक्तीकरण
आंदोलन हमेशा नि:शस्त्रीकरण  को प्रश्रय देता रहा है। इस पर गौर करने की जरूरत है।


पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जूझ रही हैं स्त्रियां।  स्त्रियां हमेशा अपने समय के जो वृहत्तर  
सन्दर्भ रहे हैं उन्हें साथ लेकर चलती रही हैं। पश्चिम में रेडिकल फेमिनिज्म अश्वेतों के अधिकार 
दिलाने की लड़ाई में उनके साथ खड़ा था।


आज यह देखकर खुशी होती है कि भारत में गांव-गांव की स्त्रियों में भी यह चेतना आ रही 
है। वे अपने और अन्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सरोकारों के प्रति जागरूक हो रही 
है | स्त्री के अंदर की दुर्गा शक्ति अब जाग चुकी है। 

गांव-देहात से लेकर चौपाल तक वह अपने और वृहत्तर मानवीय सरोकारों के लिए उठ रही है। 
हालांकि देह अभी भी स्त्री मुक्ति की राह में एक बड़ी बाधा है। दुर्गा को भी इसीलिए शस्त्र उठाना  
पड़ा क्योंकि महिषासुर उनके साथ विवाह करना चाहता था।

             (शशिकांत के साथ बातचीत पर आधारित. राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित.)

साभार 


प्रेषिका 
गीता पंडित 

10 comments:

गीता पंडित said...

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Rajasthan Ghumo Thanks Gita ji....भारतीय नारी तो स्वयं शक्ति स्वरूपा है,बस आवश्यकता है,कि वह स्वयं अपनी शक्ति पहिचाने और उसकी शक्ति को यथेष्ठ मान्यता प्राप्त.हो.......... कुछ अद्भुत सा लगता है! “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते………. ” के सिद्धांत में विश्वास करने वाला देश,विदुषी नारियों को शास्त्रार्थ का अधिकार प्रदान करने वाला देश अपने देश की रक्षार्थ अपने पुत्र का बलिदान करने वाली,नारियों का देश ,पुरुष से पूर्व नारी को सम्मानित स्थान प्रदान करने वाला हमारा देश भारत नारी सशक्तिकरण की पुकार करे! ,”सीता राम”,राधाकृष्ण,उमापति महादेव,लक्ष्मीपति विष्णु के नाम से पुकारे जाने वाले शिव-विष्णु के इस देश में, यज्ञ में पत्नी की अनुपस्थिति को स्वीकार न करने वाले इस देश में आज नारी को अपना सम्मानित अस्तित्व बनाये रखने के लिए इतनी जद्दोजेहद करनी पड़े! .किसी भी समस्या पर विचार करने से पूर्व उसके अतीत पर दृष्टिपात करना आवश्यक हो जाता है............ निस्संदेह आज विश्व के किसी भी देश से अधिक कार्यरत महिलाएं हमारे देश में हैं,महिला प्रोफेशनल्स भी हमारे देश में सर्वधिक हैं,जो हमारे देश में तथा देश से बाहर कार्य रत हैं.,परन्तु?——
आज भी समस्त सरकारी प्रतिबंधों के पश्चात भी लिंग परीक्षण होते हैं और लड़कियों के जन्म ग्रहण करने से पूर्व ही उनकी जीवनलीला समाप्त कर दी जाती है.आज भी ग्रामीण व सुदूर स्थानों पर हमारी बालिकाएं स्कूल जाती ही नहीं और यदि जाति भी हैं तो महत्त्व न समझ पाने के कारण प्राथमिक शिक्षा से पूर्व हो पढ़ाई छोड़ देती हैं .....>>>>>>>>>...............jai Shri Krishna....

गीता पंडित said...

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Rajasthan Ghumo ‎@ Gita ji.....नारियों का जीवन पूर्णतया असुरक्षित है बस,ट्रेन,हवाई यात्रा,कार्यस्थल,यहाँ तक की परिवारों में भी .लड़कियों को छेड़छाड़ का शिकार होना पड़ता है,बलात्कार,आदि समस्याएँ वृद्धि को प्राप्त हो रही हैं.कुपोषण,दहेज़ ,स्वास्थय,की समस्याएँ,घरेलू हिंसा,कार्यस्थलों पर शारीरिक,मानसिक उत्पीडन,आर्थिक परतंत्रता ,वेश्यावृत्ति बाल विवाह (देश के कुछ भागों),आदि समस्याओं के कारण हमारे नारी सशक्तिकरण के दावों पर प्रश्नचिंह लग जाता है.....>>>....Jai shri Krishna...

गीता पंडित said...

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Ashish Pandey पुरुष अपना विस्तार कब करेगा?पुरानी मानसिकता के पुरुषों में आज भी पूर्वाग्रह हैं और यह खत्म होने चाहिए ..सार्थक लेख

गीता पंडित said...

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Ashish Pandey पुरुष अपना विस्तार कब करेगा?पुरानी मानसिकता के पुरुषों में आज भी पूर्वाग्रह हैं और यह खत्म होने चाहिए ..सार्थक लेख

गीता पंडित said...

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Jeewan Soni

mere vichaar mein kuchh had tak to naari khud zimmedaar hai apni in paristhitiyon ki.

गीता पंडित said...

यह सच है कि भारत की स्त्रियां आज घर से बाहर निकल रही हैं, लेकिन वह शिकार भी हो रही हैं। रॉबर्ट जेनसेन की बहुचर्चित किताब ‘‘गेटिंग ऑफ: पोर्नोग्राफी एंड दि एंड ऑफ मेस्कुलिनिटी’’ में उन्होंने माना है कि भूमंडलीकरण के बाद विज्ञापन, बाजार और नव साम्राज्यवादी आचरण के पीछे सबसे पहला मुखौटा स्त्री का है। ... उदय प्रकाश

गीता पंडित said...

गांव-देहात से लेकर चौपाल तक वह अपने और वृहत्तर मानवीय सरोकारों के लिए उठ रही है। हालांकि देह अभी भी स्त्री मुक्ति की राह में एक बड़ी बाधा है। दुर्गा को भी इसीलिए शस्त्र उठाना पड़ क्योंकि महिषासुर उनके साथ विवाह करना चाहता था........अनामिका ..

गीता पंडित said...

स्त्री विमर्श पर
एक सार्थक आलेख ...

आज भी देह ही कारण है
स्त्री अभी भी है कहाँ ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

NICE.
--
Happy Dushara.
VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
--
MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
Net nahi chal raha hai.

Unknown said...

मुझे तो लगता है.....
बस तू तो है धरा
सहती है...सहजती है...
जननी है
बन के बहती गँगा कि धारा सी
कहाँ से उपजी और कहाँ अंत ...
तेरा सिर्फ मौन ही स्वीकारा जायेगा
क्यों कि
तू माँ है
तू बेटी है
तू भार्या है
तू बहन है....हर रूप में तू आश्रित है.....