संक्षिप्त परिचय
नाम: मोहम्मद शाहिद अख्तर
जन्मतिथि: 21 मार्च 1962
जन्म स्थान: गौतम बुद्ध की नगरी, गया
शिक्षा: बीआईटी, सिंदरी, धनबाद से केमिकल इंजीनियरिंग में बी. ई.
लेकिन मेरी असली शिक्षा समाज के बीच हुई।
हर शख्स की तरह मेरे भी गम-ए-जानां हैं और साथ ही गम-ए-दौरां भी अपनी शिद्दत के साथ है। अपने इसी गम-ए-दौरां और गम-ए-जानां को अपनी नज्मों और कविताओं में अभिव्यक्त करने की कोशिश करता हूं। बेशक मैं यह जानता हूं कि:
बस कि दुश्वार है हर बात का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना
(गालिब)
प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) की हिंदी सेवा 'भाषा' में वरिष्ठ पत्रकार के रूप में कार्यरत।
प्रकाशन:
1. समकालीन जनमत, पटना में विभिन्न समसामयिक मुद्दों पर लेखन
2. अंग्रेजी में महिलाओं की स्थिति, खास कर मुस्लिम महिलाओं की स्थिति पर कई लेख प्रकाशित
3. उर्दू के कई अखबारों में लेख प्रकाशित
4. नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीसरे अध्यक्ष (1887), बदरूद्दीन तैयबजी के लेखों के संकलन और उनकी जीवनरेखा पर कार्यरत
अनुवाद:
1. गार्डन टी पार्टी और अन्य कहानियां
कैथरीन मैन्सफील्ड
राजकमल प्रकाशन
2. प्राचीन और मध्यकालीन समाजिक संरचना और संस्कृतियां
अमर फारूकी
ग्रंथशिल्पी, दिल्ली
संप्रति: मोहम्मद शाहिद अख्तर
फ्लैट नंबर - 4060
वसुंधरा सेक्टर 4बी
गाजियाबाद - 201012
उत्तर प्रदेश
फोन नंबर: 0120- 4118828
मोबाइल: 9971055984
ईमेल: shazul@gmail.com
जवां होती हसीं लड़कियां -१
जवां होती हसीं लड़कियां
कुछ शोख सी होती हैं
हंसती हैं, खिलखिलाती हैं
दिल के चरखे पर बुनती हैं
हसीं सुलगते हुए हजार ख्वाब !
तब आरिज़ गुलगूं होता है
हुस्न के तलबगार होते हैं
आंखों से मस्ती छलकती है
अलसाई सी खुद में खोई रहती हैं
गुनगुनाती हैं हर वक्त
जवां होती हसीं लड़कियां...
वक्त गुजरता है
चोर निगाहें अब भी टटोलती हैं
जवानी की दहलीज लांघते
दिल के चरखे पर बुनती हैं
हसीं सुलगते हुए हजार ख्वाब !
तब आरिज़ गुलगूं होता है
हुस्न के तलबगार होते हैं
आंखों से मस्ती छलकती है
अलसाई सी खुद में खोई रहती हैं
गुनगुनाती हैं हर वक्त
जवां होती हसीं लड़कियां...
वक्त गुजरता है
चोर निगाहें अब भी टटोलती हैं
जवानी की दहलीज लांघते
उसके जिस्म-ओ-तन
अब ख्वाब तार-तार होते हैं
और आंखें काटती हैं
अब ख्वाब तार-तार होते हैं
और आंखें काटती हैं
बस इंतजार की घडि़यां।
दिल की बस्ती वीरान होती है
और आंखों में तैरता है
दिल की बस्ती वीरान होती है
और आंखों में तैरता है
टूटे सपनों का सैलाब
रुखसार पर ढलकता है
सदियों का इंतजार
जवानी खोती हसीं लड़कियां...
रुखसार पर ढलकता है
सदियों का इंतजार
जवानी खोती हसीं लड़कियां...
जवानी खोती हसीं लड़कियां
काटती रह जाती हैं
दिल के चरखे पर
हसीं सपनों का फरेब
दिल के चरखे पर
हसीं सपनों का फरेब
और न जाने कब लांघ जाती हैं
जवानी की दहलीज
जवां होती हसीं लड़कियों के लिए
जवां होती हसीं लड़कियों के लिए
जमाना क्यों इतना आसान नहीं होता?
उनके हसीं सपनों के लिए
हसीं सब्ज पत्ते क्यों दरकार होते हैं ?
उनके हसीं सपनों के लिए
हसीं सब्ज पत्ते क्यों दरकार होते हैं ?
........
जवां होती हसीं लड़कियां -2
जवां होती हसीं लड़कियां
सिर्फ हसीन होती हैं ।
सिर्फ हुस्न होती हैं ।
सिर्फ जिस्म होती हैं।
कौन झांकता हैं उनकी आंखों में
कि वहां सैलाब क्यों है? कौन टटोलता है उनके दिल को
कि वहां क्या बरपा है?
जवां होती हसीं लड़कियां
हसीं तितलियों के मानिंद हैं।
हर कोई हविस के हाथों में
उन्हें कैद करने को दरपा है।
जवां होती हसीं लड़कियां
कब तलक रहें महुए इंतजार? कब तलक बचाएं जिस्मो-जान?
कब तलक सुनाएं दास्तान-ए-दिल फिगार??
.......
जवां होती हसीं लड़कियां
सिर्फ हसीन होती हैं ।
सिर्फ हुस्न होती हैं ।
सिर्फ जिस्म होती हैं।
कौन झांकता हैं उनकी आंखों में
कि वहां सैलाब क्यों है? कौन टटोलता है उनके दिल को
कि वहां क्या बरपा है?
जवां होती हसीं लड़कियां
हसीं तितलियों के मानिंद हैं।
हर कोई हविस के हाथों में
उन्हें कैद करने को दरपा है।
जवां होती हसीं लड़कियां
कब तलक रहें महुए इंतजार? कब तलक बचाएं जिस्मो-जान?
कब तलक सुनाएं दास्तान-ए-दिल फिगार??
.......
जवां होती हसीं लड़कियां -3
जागती जागती सो जाती हैं ख्वाबों में खो जाती हैं
जवां होती हसीं लड़कियां
ख्वाब बुनते-बुनते खुद ही
नींद और ख्वाब खो देती हैं
जवां होती हसीं लड़कियां
नींद और ख्वाब खो देती हैं
जवां होती हसीं लड़कियां
आंखों में किसी का अक्स लिए
दिल में मीठा कसक लिए
होश गंवा देती हैं
जवां होती हसीं लड़कियां
थोड़ी पागल सी, थोड़ी चंचल सी
किसी पहाड़ी नदी के मानिंद
किसी दरिया में समा जाती हैं
जवां होती हसीं लड़कियां
दिल में मीठा कसक लिए
होश गंवा देती हैं
जवां होती हसीं लड़कियां
थोड़ी पागल सी, थोड़ी चंचल सी
किसी पहाड़ी नदी के मानिंद
किसी दरिया में समा जाती हैं
जवां होती हसीं लड़कियां
......
जवां होती हसीं लड़कियां -4
जवां होती हसीं लड़कियां परी होती हैं
परियां जन्नत से भेजी जाती हैं
कुछ परियां इस धरती तक पहुंच नहीं पाती
क्योंकि कुछ बंदों को लगता है
कि ये उनके घर को जहन्नुम बना देंगी
कि जवां हो कर ये परियां
घरों पर बोझ बन जाती हैं
जवां होती हसीं लड़कियां ...
- शाहिद अख्तर
प्रेषिका
गाता पंडित
9 comments:
sabki sab lazabab.
Shukriya, Vandana ji
आपकी कवितायेँ अनमोल हैं आपने सुन्दर भावों में अपने शब्दों को पिरोया है और उस यथार्थ को दर्शाया है जो उस अवस्था में लड़कियों के साथ हो रहा है.... आप पूरी तरह से कामियाब हुए हैं....
बधाई आपको...शाहिद जी..
ये हमारी खुशकिस्मती है कि आपकी रचनाएँ हमें पढ़ने के लियें मिलीं....
आभार आपका... :))
अभिनंदन आपका शाहिद जी " हम और हमारी लेखनी" ब्लॉग पर ...
जवां होती हसीं लड़कियों के लिए
जमाना क्योंस इतना आसान नहीं होता?
उनके हसीं सपनों के लिए
हसीं सब्ज पत्तेा
क्यों दरकार होते हैं ?
बहुत सुंदर...
..शुक्रिया
गीता पंडित
बहुत सुंदर शब्दों के साथ अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं....
अलग अलग मिजाज और तरबीयत से नमूदार हुईं ये जवान होतीं हसीन लड़कियाँ -- | शाहिद साहब ! ये चंद कविताएँ सिर्फ कविता नहीं , फलसफा हैं ज़िंदगी का | निहायत खूबसूरती से पेश कीं की आपने --
बानगी देखिए ---
दिल के चरखे पर बुनतीं हैं
हसीन सुलगते हुए हज़ार ख़्वाब
कौन झाँकता है उनकी आँखों में
कि वहाँ सैलाब क्यों है ?
किसी पहाड़ी नदी के मानिंद
किसी दरिया में समा जाती है
जवान होतीं हसीन लड़कियाँ
बहुत ख़ूब |
वाह ..बहुत ही अच्छी प्रस्तुति दी है आपने ।
nice..
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