tag:blogger.com,1999:blog-3736717499710146255.post2923020103495885570..comments2024-02-02T09:00:09.774-08:00Comments on हम और हमारी लेखनी: राम की जल - समाधि .... भारत भूषणगीता पंडितhttp://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-3736717499710146255.post-87491239336622692762013-06-14T21:28:37.147-07:002013-06-14T21:28:37.147-07:00बहुत सुंदर प्रस्तुति .... बहुत सुंदर प्रस्तुति .... संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3736717499710146255.post-28010474534082514142013-06-13T20:52:30.379-07:002013-06-13T20:52:30.379-07:00मार्मिक प्रस्तुति के लिए साधुवाद...गीता....राम पर ...मार्मिक प्रस्तुति के लिए साधुवाद...गीता....राम पर अनगिन काव्य-महाकाव्य लिखे गए हैं। भारतीय रचनात्मकता ने राम के कितने ही रूप रचे, व्याख्याएं कीं, पर एक रूप राम का बड़े-बड़े महाकवियों की भाषा की पकड़ से छूटा रहा - यह था विरह, अपराधबोध, अकेलेपन और गहन अवसाद में डूबा राम का रूप। कोई 32 वर्ष पहले हिंदी के यशस्वी गीतकार भारत भूषण ने राम की यह छवि भाषा में बांधी, फिर तो यह कविता देशभर में गूंजी। यह कविता एक विलाप है। आपने इस कविता के प्रस्तुतीकरण के द्वारा राम के मन की उस दशा को उभारा है जिससे अधिकतर लोग अंजान है या देखना नही चाहते है या समझना ही नही चाहते। सरयू के तट पर खड़े अपने जीवन का पुनरावलोकन करते राम का विलाप। जीवन की इस संध्या में सरयू का सूना नील-लोहित तट है... जल पर बिखरा हुआ सूरज... और इस एकांत बेला में अपने जीवन का पुनरावलोकन करते राम सीता को खो देने की पीड़ा से गहरे दुख में डूब गए हैं... तभी राम को पानी में सीता की प्रिय छवि दिखती है और राम विकल हो जल पर पांव रखते बढ़ते चले जाते हैं... और जल के अनंत विस्तार में वे विलीन हो जाते हैं, जैसे सागर में सागर ही विलीन हो रहा हो ...Mithileshhttps://www.blogger.com/profile/10295722152040717681noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3736717499710146255.post-41748699394849743912013-06-13T20:51:26.796-07:002013-06-13T20:51:26.796-07:00मार्मिक प्रस्तुति के लिए साधुवाद...गीता....राम पर ...मार्मिक प्रस्तुति के लिए साधुवाद...गीता....राम पर अनगिन काव्य-महाकाव्य लिखे गए हैं। भारतीय रचनात्मकता ने राम के कितने ही रूप रचे, व्याख्याएं कीं, पर एक रूप राम का बड़े-बड़े महाकवियों की भाषा की पकड़ से छूटा रहा - यह था विरह, अपराधबोध, अकेलेपन और गहन अवसाद में डूबा राम का रूप। कोई 32 वर्ष पहले हिंदी के यशस्वी गीतकार भारत भूषण ने राम की यह छवि भाषा में बांधी, फिर तो यह कविता देशभर में गूंजी। यह कविता एक विलाप है। आपने इस कविता के प्रस्तुतीकरण के द्वारा राम के मन की उस दशा को उभारा है जिससे अधिकतर लोग अंजान है या देखना नही चाहते है या समझना ही नही चाहते। सरयू के तट पर खड़े अपने जीवन का पुनरावलोकन करते राम का विलाप। जीवन की इस संध्या में सरयू का सूना नील-लोहित तट है... जल पर बिखरा हुआ सूरज... और इस एकांत बेला में अपने जीवन का पुनरावलोकन करते राम सीता को खो देने की पीड़ा से गहरे दुख में डूब गए हैं... तभी राम को पानी में सीता की प्रिय छवि दिखती है और राम विकल हो जल पर पांव रखते बढ़ते चले जाते हैं... और जल के अनंत विस्तार में वे विलीन हो जाते हैं, जैसे सागर में सागर ही विलीन हो रहा हो ...Mithileshhttps://www.blogger.com/profile/10295722152040717681noreply@blogger.com