tag:blogger.com,1999:blog-3736717499710146255.post6794552906055731530..comments2024-02-02T09:00:09.774-08:00Comments on हम और हमारी लेखनी: एक औरत तीन बटा चार ---- सुधा अरोड़ागीता पंडितhttp://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-3736717499710146255.post-32950245763214624582015-10-04T12:46:46.471-07:002015-10-04T12:46:46.471-07:00एक कविता भी सुधा अरोड़ा जी की ...
‘कम से कम एक दरव...एक कविता भी सुधा अरोड़ा जी की ...<br /><br />‘कम से कम एक दरवाजा’ <br />‘चाहे नक्काशीदार एंटीक दरवाजा हो<br /> या लकड़ी के चिरे हुए फट्टों से बना<br /> उस पर खूबसूरत हैंडल जड़ा हो<br /> या लोहे का कुंडा!<br />वह दरवाजा ऐसे घर का हो<br /> जहां मां-बाप की रजामंदी के बगैर <br /> अपने प्रेमी के साथ भागी हुई बेटी से <br /> माता पिता कह सकें...<br />जानते हैं, तुमने गलत फैसला लिया<br /> फिर भी यही दुआ है<br /> खुश रहो उसके साथ<br /> जिसे तुमने वरा है!<br />यह मत भूलना<br /> कभी यह फैसला भारी पड़े<br /> और पांव लौटने को मुड़े<br /> तो यह दरवाजा खुला है तुम्हारे लिए!<br />बेटियों को जब सारी दिशाएं<br /> बंद नजर आएं<br /> कम से कम एक दरवाजा<br /> हमेशा खुला रहे उनके लिए!गीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.com